दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को लिखा है कि वह विधायकों और सांसदों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकें।
हालांकि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मार्च 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक, वकील जो सांसद और विधायक बन गए हैं, वह अदालत में अपनी प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा था कि भले ही इन सांसदों और विधायकों को वेतन और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं लेकिन यह इन्हें वकील के तौर पर प्रैक्टिस से नहीं रोकती हैं।
उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया था कि विधायकों और सांसदों को भी दूसरे पूर्णकालिक कर्मचारियों की तरह प्रैक्टिस करने से रोका जाना चाहिए। रोक सिर्फ तब है जब कोई सांसद या विधायक मंत्री बन जाता है। राम जेठमलानी जैसे वरिष्ठ वकीलों ने सांसद बनने के बाद भी अपनी प्रैक्टिस जारी रखी इतना ही नहीं मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली भी बार के सदस्य हैं और प्रैक्टिस करते हैं, जैसा कि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मानहानि के मामले में खुद का केस लड़ा।
इस मिसाल के बावजूद, उपाध्याय ने अपने पत्र में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों का उल्लेख किया है और अपनी मांग के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व के फैसले का भी ज़िक्र किया है। उन्होंने भारत के चीफ जस्टिस को भी पत्र की एक कॉपी भेजी है।
बार काउंसिल के अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में (पत्र देखें), अश्विनी उपाध्याय ने BCI के नियमों के अध्याय- II, भाग- VI का उल्लेख किया है जो ‘व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक’ से संबंधित है, खासकर ‘अन्य रोजगारों पर प्रतिबंध ‘ जिसमें कहा गया है कि एक वकील व्यक्तिगत रूप से किसी भी व्यवसाय में शामिल नहीं हो सकता (हालांकि वह इस तरह के किसी व्यवसाय में एक निष्क्रिय भागीदार हो सकता है), किसी भी व्यक्ति, सरकार, फर्म, निगम का पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हो सकता अगर वह प्रैक्टिस कर रहा है।
उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के एक पिछले फैसले का उदहारण दिया है। उन्होंने कहा कि 8-4-1996 को डॉ हनीराज एल चुलानी बनाम बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा [1996 AIR 1708, (1996) SCC (3) 342] में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एक व्यक्ति जो एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करने की पात्रता रखता है लेकिन पूर्णकालिक या अंशकालिक सेवा या रोजगार या किसी भी व्यापार, व्यवसाय या पेशे में निहित है, उसे एक एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस की इजाज़त नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘कानूनी पेशे के लिए पूर्ण समय और ध्यान देने की आवश्यकता है और एक वकील को एक समय में दो या उससे अधिक घोड़ों की सवारी नहीं करनी चाहिए।”
पत्र में यह भी कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों को एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधियों, जो एक सार्वजनिक सेवक भी हैं को यह अनुमति है। यह संविधन के अनुच्छेद 14-15 के खिलाफ है। एक जनप्रतिनिधि को कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों की तुलना में बेहतर वेतन, भत्ता और सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ मिलते हैं। यह एक सम्माननीय और पूर्णकालिक पेशा है लेकिन यह सिर्फ बात करने से नहीं बल्कि एक जनप्रतिनिधि द्वारा लोगों के कल्याण के लिए काम करने से महान होगा और जनप्रतिनिधियों से उम्मीद की जाती है कि वह सार्वजनिक हितों को अपने हितों से पहले रखेंगे।