Kesavananda Bharati: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, डी वाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार (7 दिसंबर) को बताया कि संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को निर्धारित करने वाले केशवानंद भारती का ऐतिहासिक फैसला अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर भारत की 10 भाषाओं में उपलब्ध है।
‘‘बुनियादी संरचना’’ सिद्धांत पर 1973 के प्रशंसित फैसले ने संविधान में संशोधन करने की संसद की व्यापक शक्ति को खत्म कर दिया था और साथ ही न्यायपालिका को इसके उल्लंघन के आधार पर किसी भी संशोधन की समीक्षा करने का अधिकार दिया।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच करने संबंधी याचिका पर सुनवाई शुरू होने से पहले कहा, ‘‘वर्ष 2023 में केशवानंद भारती मामले में फैसले के 50 साल पूरे हो रहे हैं। हमने फैसले को लेकर एक ‘वेब-पेज’ बनाया है। समाज के व्यापक वर्ग तक पहुंचने के लिए मैंने सोचा कि हम इसका भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं क्योंकि भाषा संबंधी बाधाएं लोगों को अदालत के कामकाज को वास्तव में समझने से रोकती हैं।’’
भाषा संबंधी बाधाओं को तोड़ने पर दिया जोर
सीजेआई ने कहा कि अब यह फैसला हिंदी, तेलुगु, तमिल, उड़िया, मलयालम, गुजराती, कन्नड़, बंगाली, असमिया और मराठी में उपलब्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे फैसलों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के हमारे प्रयासों के समान है।’’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 20,000 फैसलों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है और ई-एससीआर (उच्चतम न्यायालय रिपोर्ट का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण) पर अपलोड किया गया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने की सराहना
चीफ जस्टिस ने कहा कि वकील और जिला अदालतें सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को हिंदी में उद्धृत और संदर्भित कर सकते हैं, जहां काम मुख्य रूप से हिंदी में किया जाता है, अब संविधान में अधिसूचित सभी भारतीय भाषाओं में इनका अनुवाद किया जा रहा है। इस कदम की सराहना करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “ज्यादातर लोग केशवानंद भारती फैसले के बारे में सिर्फ यही जानते थे कि कोई बड़ा मामला है।”
चीफ जस्टिस ने कहा कि कानून के वे छात्र जो ‘अत्यधिक संसाधन वाले कॉलेजों’ में नहीं पढ़ते हैं, वे भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक नहीं पहुंच सकते। उन्होंने कहा, “अब जो छात्र ई-एससीआर में हिंदी में फैसला पढ़ना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं।” उन्होंने कहा कि किसी अन्य देश ने ऐसा करने का प्रयास नहीं किया है।
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