तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच लंबे समय से चले आ रहे कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (16 फरवरी) को फैसला दे दिया। कोर्ट ने तमिलनाडु को मिलने वाले पानी की मात्रा को घटा दिया है। इस फैसले से कर्नाटक को फायदा पहुंचा है। कोर्ट ने कहा कि नदी पर किसी राज्य का दावा नहीं है। अब इस फैसले को लागू कराना केंद्र सरकार का काम है। कोर्ट ने कहा कि पानी राष्ट्रीय संपत्ति है। कोर्ट ने कहा कि अगले 15 साल के लिए ये फैसला प्रभावी रहेगा।
कावेरी जल विवाद पर बेहद अहम फैसला देते हुए तमिलनाडु को मिलने वाले पानी का हिस्सा घटाकर 192 से 177.25 TMC कर दिया है और यह हिस्सा कर्नाटक को दे दिया है। हिस्सेदारी बढ़ाए जाने के बाद अब कर्नाटक को 270 TMC के स्थान पर 284.75 TMC पानी मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 1894 और 1924 के समझौतों को और उन्हें वैध ठहराने वाले ट्रिब्यूनल के फैसले को भी सही करार दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय जल योजना के लागू होने के बाद कोई भी राज्य किसी ऐसी नदी पर अपना एकछत्र अधिकार नहीं जता सकता जो शुरू होने के बाद किसी दूसरे राज्य से गुज़रती है। कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु को हर महीने दिए जाने वाले पानी को लेकर ट्रिब्यूनल का आदेश अगले 15 साल तक मानना होगा।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने ने कहा कि ट्रिब्यूनल का तमिलनाडु में खेती का क्षेत्र बताने वाला फैसला सही है लेकिन ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु में भूमिगत जल की उपलब्धता पर विचार नहीं किया, इसलिए कर्नाटक के पानी की हिस्सेदारी 14.75 TMC बढ़ाई जाए। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि केंद्र ट्रिब्यूनल के आदेश के मुताबिक कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन करेगा। कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने फरवरी 2007 के कावेरी ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी थी। कावेरी जल विवाद पर अंतिम सुनवाई 11 जुलाई को शुरू हुई थी और बहस दो महीने तक चली। 20 सितंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।