सांसदों और विधायकों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने की मांग के मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने ऐसे तमाम सांसदों और विधायकों को नोटिस जारी करने का फैसला किया है। नोटिस में इन से जवाब देने के लिए कहा जाएगा कि क्यों ना इनके प्रैक्टिस करने पर रोक लगा दी जाय क्योंकि ऐसा करना एडवोकेट एक्ट के खिलाफ है। BCI ने इस पूरे मामले पर एक कमेटी बनाई थी जिसने इन एडवोकेट्स को नोटिस भेजने का फैसला किया है। कुछ एक जाने-माने सांसद वकीलों को नोटिस जारी कर भी दिया गया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया अखबारों में भी सार्वजनिक नोटिस जारी करेगी।  कहा जा रहा है कि करीब 500 जनप्रतिनिधी इसके दायरे में आऐंगे।

बता दें कि दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखा था कि वो विधायकों और सांसदों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकें जिसके बाद ही BCI ने मामले पर विचार के लिए कमेटी गठित की थी। पत्र में यह भी कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों को एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधियों, जो एक सार्वजनिक सेवक भी हैं को यह अनुमति है। यह संविधन के अनुच्छेद 14-15 के खिलाफ है।

हालांकि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मार्च 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक, वकील जो सांसद और विधायक बन गए हैं, वह अदालत में अपनी प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा था कि भले ही इन सांसदों और विधायकों को वेतन और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं लेकिन यह इन्हें वकील के तौर पर प्रैक्टिस से नहीं रोकती हैं। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया था कि विधायकों और सांसदों को भी दूसरे पूर्णकालिक कर्मचारियों की तरह प्रैक्टिस करने से रोका जाना चाहिए। रोक सिर्फ तब है जब कोई सांसद या विधायक मंत्री बन जाता है।

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