आधार की संवैधानिकता और अनिवार्यता को लेकर गुरुवार (15 मार्च) को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचिककर्त्ता की तरफ से कहा गया कि आधार प्रोजेक्ट आधार एक्ट से बड़ा हो गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि एक्ट के अंदर जो बातें नहीं कही गई हैं भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) वह बाते भी लागू कर रहा है।
याचिकाकर्ता ने मांग की कि एक्ट के तहत आधार के लिए जो कुछ भी हो रहा है उसका ऑडिट होना चाहिए। सुनवाई को दौरान अर्थशास्त्री बेंथम का हवाला देते हुए कहा गया कि अगर लोकतंत्र को संरक्षित करने की बजाए लोगों पर लगातार निगरानी रखी जायेगी तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जायेगा। याचिककर्त्ता की तरफ से जिन तीन बिदुओं पर जोर दिया गया उनमें निगरानी, पहचान और गरिमा का मुद्दा शामिल है। साथ ही कहा गया कि आधार प्रोजेक्ट कितना कारगर रहा, इसका परिणाम क्या रहा, उसकी समीक्षा की गई या नही, इसकी जानकारी भी दी जानी चाहिए। मामले की सुनवाई अब 20 मार्च को होगी।
इससे पहले बुधावार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि UIDAI द्वारा 2010 से 2016 तक नागरिकों से व्यक्तिगत सूचनाओं को एकत्रित किया जाना अवैध था और जो सूचनाएं एकत्रित की गईं उन्हें नष्ट किया जाना चाहिए… 2016 में आधार को लेकर कानून प्रभावी हो गया और उसके बाद व्यक्तिगत सूचनाओं को एकत्रित करने की प्रक्रिया ही कानूनी है।
मामले में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने कहा कि पूरे छह साल सरकार ने आधिकारिक प्रक्रिया पूरी किए बगैर लोगों से उनकी सूचनाएं लीं। इसलिए यह डाटा नष्ट किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2010 से 2016 तक लोगों से व्यक्तिगत सूचनाओं को लेने और उनके इस्तेमाल के बारे में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं थे। यह स्पष्ट तौर पर नागरिकों के निजता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन था।