‘सच्ची रामायण’ ईवी रामासामी पेरियार की सबसे चर्चित और विवादित रचनाओं में से एक है। सच्ची रामायण पढ़ने के बाद एक बात जो दिमाग में फौरन आती वह यह कि पेरियार ने किस तरह से रामायण को बिल्कुल एक अलग नजरिए के साथ लोगों के सामने रखा है। पेरियार की सच्ची रामायण, रामायण का तार्किकता के साथ अन्वेषण करती है और पाठकों के सामने एक ऐसा मत रखती है जो रामायण के स्थापित मत के पूरी तरह से विपरीत है।
सबसे पहले ये किताब तमिल भाषा में 1944 में प्रकाशित हुई थी। जिसे बाद में अंग्रेजी में और फिर उसके बाद हिंदी में अनूदित किया गया। सच्ची रामायण के जरिए पेरियार ने द्रविड़ दृष्टिकोण से रामायण की आलोचना की है, जिसे सभी उत्तर भारतीयों को पढ़ना चाहिए। गौर करने लायक बात ये है कि सच्ची रामायण को लेकर विवाद भी बहुत हुआ है। यहां तक कि इस पर रोक लगाने की मांग भी देश में की गयी। जिसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि ये देश के बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है जो कि राम को अपना आराध्य मानते हैं। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने किताब पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।
किताब पढ़कर आपको समझ आएगा कि पेरियार ने रामायण को कभी धर्म से जोड़कर देखा ही नहीं। वे साफ कहते हैं कि रामायण एक कल्पना है जिसके जरिए आर्यों ने द्रविड़ों पर अपना आधिपत्य जमाना चाहा। पेरियार उसी आर्य आधिपत्य को चुनौती देते हैं और मान्यताओं का खंडन करते हैं। पेरियार द्रविड़ आत्मसम्मान की बात करते हैं। वे कहते हैं कि रामायण की प्रचलित कहानी कुछ और नहीं महज द्रविड़ों को नीचा दिखाने का एक उपकरण है। इसलिए वे सच्ची रामायण में रामायण की आलोचना करते हैं।
पेरियार इस किताब में कहते हैं कि उनका मकसद इंसान-इंसान और समाज-समाज के बीच के विभेद को खत्म करना है।किताब की बात की जाए तो पेरियार बेहद आलोचनात्मक तरीके से रामायण की कहानी को परत-दर-परत सामने रखते हैं और रामायण की बुनियाद पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देते हैं। वे कहते हैं कि रामायण को एक कल्पना की तरह ही लें और इसे धार्मिक पुस्तक न समझें और न ही इसके चरित्रों को दैवीय दर्जा दें।
अगर आप रामायण को एक अलग नजरिए के साथ समझना चाहते हैं तो ये किताब पढ़ सकते हैं, जिनकी भावनाएं जल्दी आहत हो जाती हैं वे इसे न पढ़ें।