देश के हर नागरिक के लिए ‘गाइड’ है राजीव भार्गव की ‘राष्ट्र और नैतिकता’

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देश के हर नागरिक के लिए ‘गाइड’ है राजीव भार्गव की ‘राष्ट्र और नैतिकता’
देश के हर नागरिक के लिए ‘गाइड’ है राजीव भार्गव की ‘राष्ट्र और नैतिकता’

लेखक राजीव भार्गव एक जाने माने स्तंभकार हैं। इनके लेख अखबारों में अक्सर छपते रहते हैं। ‘राष्ट्र और नैतिकता’ इनकी अंग्रेजी किताब ‘Between Hope and Despair’ का हिंदी अनुवाद है। किताब की प्रस्तावना आज के समय की परिस्थिति के बारे में बताती है कि कैसे हमारी सामूहिक नैतिक पहचान पर बहुत दबाव है। किताब को बहुत सहज लहजे में लिखा गया है। लेखक बीच-बीच में सवाल करते हैं, आसान तरीके से बात समझाते हैं, समाधान भी पेश करते हैं और पाठकों को नैतिक मूल्यों के आधार पर फैसले लेने को कहते हैं।   

लेखक बताते हैं कि अपने देश में हो रही घटनाओं का विश्लेषण करना, उस पर चिंतना करना कोई देशद्रोह नहीं है। हमें जल्दी में किसी बारे में धारणा बनाने से बचना चाहिए और अच्छे से किसी चीज को समझकर फैसले लेने चाहिए। लेखक के अनुसार लोकतंत्र में दोस्त और दुश्मन की मानसिकता के आधार पर लोगों को नहीं बांटना चाहिए। लोकतंत्र में किसी एक पार्टी को चुनने वाले न देशभक्त होतें हैं न दूसरे नागरिक देशविरोधी।

भार्गव इस बात को अहम मानते हैं कि शिक्षित भारतीयों को अपनी सोच और विचार सार्वजनिक करने चाहिए। उन्हें इस बारे में सोचकर हिचकना नहीं चाहिए कि कोई क्या कहेगा। सार्वजनिक जीवन में संवाद और संवाद की संस्कृति विकसित करने पर लेखक जोर देते हैं। लेखक कहते हैं कि चाहे भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा हो या जातीय हिंसा , इन सब मामलों पर खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए। लेखक ने उन हत्याओं का भी इस किताब में जिक्र किया है जो कि विचारधारा के नाम पर की गईं। जैसे दाभोलकर,पंसारे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या। इन लोगों ने खुलकर अपनी बात रखी इसलिए इन्हें मार दिया गया। लेखक कहते हैं कि भारत के लिए इस तरह की हत्याएं सही नहीं हैं।

इसके अलावा लेखक ने रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली हिंसा पर भी अपनी बात कही है। जैसे कि मर्दांगी के नाम पर होने वाली हिंसा। इस पुस्तक की खास बात है कि अकादमिक जगत की गंभीर बातों को लेखक ने आसान तरीके से समझाया है। लेखक बताते हैं कि आज हमारा लोकतंत्र एक वैचारिक संकट का सामना कर रहा है। वे कहते हैं कि नागरिक एक नैतिक प्राणी है। बिना सही गलत तय किए वह रह ही नहीं सकता। अगर कोई सही या गलत कहने का फैसला नहीं ले पा रहा तो इसका मतलब यही है कि वह बच रहा है। लेकिन इस तरह बचना सही नहीं है।

लेखक बताते हैं कि हमारे समाज में नशे का प्रचलन इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि हमारा समाज एक सामूहिक बोरियत का शिकार हो चुका है। लेखक ने इस किताब के 10 खंडों में 100 सवालों के जवाब दिए हैं। जिसमें वे बताते हैं कि देश को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो कि समावेशी हो, जनता को सुनने वाला हो, आलोचना को सह सके, संवाद कर सके और देश हित को ऊपर रखे। किताब बताती है कि देश को क्यों मजबूत संस्थाओं , अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतंत्र को बनाए रखने की जरूरत है। लेखक बताते हैं कि हम कैसे संवैधानिक लोकतंत्र में रहते हुए भारत के भविष्य को बना सकते हैं। क्यों विविधता या बहुलता, एकरूपता से बेहतर है।

यह किताब पाठकों के मार्गदर्शक के रूप में काम करती है जो कि हर नागरिक को पढ़नी चाहिए। यह किताब पढ़कर आप काफी देर तक सोचते रहेंगे। इस किताब के अनुवादक अभिषेक श्रीवास्तव ने सही लिखा है कि यह किताब एक तरह का आध्यात्मिक सत्संग है।

किताब के बारे में-

‘राष्ट्र और नैतिकता’ का प्रकाशन राजकमल प्रकाशन द्वारा किया गया है। 387 पेजों की इस किताब को आप पेपरबैक रूप में 499 रु. की कीमत पर खरीद सकते हैं।