कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’, हर इंसान दुनिया को बेहतर बनाने की संभावनाओं से भरा है

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kailash satyarthi
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“…जिस तरह एक छोटी सी दियासलाई के दिल में रोशनी का समंदर छुपा रहता है उसी तरह मनुष्य के मस्तिष्क में दुनिया को बेहतर बनाने की अपार संभावनाएं भरी होती हैं…”, ‘दियासलाई’ नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा है। कैलाश सत्यार्थी बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ने वाले एक योद्धा के रूप में जाने जाते हैं , जो कि लंबे समय से बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयासरत हैं। पूरी दुनिया में कैलाश सत्यार्थी की पहचान बच्चों के अधिकारों के समर्थन में उठने वाली एक बुलंद आवाज के रूप में है। उन्होंने अपनी अब तक की जीवन यात्रा के अनुभवों को एक किताब के रूप में पाठकों के सामने रखा है।

इस आत्मकथा को पढ़कर पाठकों को मालूम चलता है कि कैसे बचपन से कैलाश सत्यार्थी के मन में बच्चों के प्रति करुणा का भाव था। यही आगे चलकर एक अंकुर से बड़ा छायादार वृक्ष बन गया। बचपन में गरीब के बच्चों को शिक्षा पाते न देख पाना कैलाश जी के लिए जिंदगी भर का सबक बन गया और उन्होंने अपनी जिंदगी बच्चों की शिक्षा को समर्पित की। अपना करियर एक शिक्षक के रूप में शुरू करने के बाद सत्यार्थी ने कुछ समय बाद ही कॉलेज में पढ़ाना छोड़ दिया था। इसके बाद वे दिल्ली आए और ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की शुरूआत की। बचपन बचाओ आंदोलन की शुरूआत कैसे हुई , यह अपने आप में एक दिलचस्प घटना है। पाठकों को यह जानने के लिए इस आत्मकथा को जरूर पढ़ना चाहिए।

आगे चलकर बाल मजदूरी के खिलाफ इस आंदोलन ने वैश्विक रूप ले लिया। बाल मजदूरी के खिलाफ किया गया मार्च अपने आप में एक बड़ी ऐतिहासिक घटना है। जिसने बाल मजदूरी के खिलाफ एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया। यह मार्च ही था जिसने पूरी दुनिया का ध्यान विश्वभर में कराई जा रही बाल मजदूरी के खिलाफ खींचा था। इस बारे में विस्तृत तौर पर कैलाश सत्यार्थी ने इस किताब में बताया है। यह मार्च कई देशों से होते हुए गुजरा और कुल 80,000 किमी की यात्रा तय की गई।

कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकारों के लिए लगातार प्रयासरत रहे हैं। उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ बाल मजदूरी के खिलाफ आंदोलन तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षा के लिए वैश्विक आंदोलन भी चलवाया। साल 2017 में कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के खिलाफ हो रही ट्रैफिकिंग और सेक्सुअल एब्यूज के मुद्दे पर भारत यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद देश की संसद ने कानून में सुधार किया।

अगर आप ये आत्मकथा पढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर आप भी प्रेरित होंगे। बच्चों के लिए सत्यार्थी के किए गए संघर्ष की कहानी आपको भीतर तक छू लेगी। कैलाश सत्यार्थी ने एक अध्याय तो इस पर ही लिखा है कि शायद ईश्वर की इच्छा थी कि वे बच्चों के लिए कार्य करते जाएं , वरना मारने के इतने प्रयासों के बाद भी अगर कोई व्यक्ति जीवित रह जाता है तो ये सच में चमत्कार है।

किताब पढ़कर ये समझ में आता है कि किसी भी बड़े सुधार को करने के लिए आपके पास एक बड़ा विजन होना चाहिए। जब तक आपका नजरिया वैश्विक नहीं होता तब तक आप पूरी तरह से समाधान कर नहीं सकते। आज भी हमारे देश में कई समस्याएं पुराने कानूनों को बरकरार रखने या कानून न होने के चलते है। यह बात इस किताब को पढ़कर समझ में आती है। इसके अलावा समाज सुधार की राह में कई बार आपके अपने साथ नहीं देते, कुछ भरोसा तोड़ते हैं, चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, खुद की जान भी जोखिम में पड़ जाती है। लेकिन आपको बस अपने पथ पर चलते जाना चाहिए।

इस किताब में कैलाश सत्यार्थी करुणा की बात करते हैं जिसकी आज के समय में पूरे विश्व को आवश्यकता है। सत्यार्थी कहते हैं, ‘…दूसरों की तकलीफों और समस्याओं के समाधान के लिए चुने गए या सक्षम लोग उन समस्याओं से जूझ रहे लोगों को अपनी तरह मानें या उन तकलीफों को दूर करें..।’इस आत्मकथा की सबसे अच्छी बात ये है कि कैलाश सत्यार्थी खुद को लेकर भी ईमानदारी से बात करते हैं और अपनी मानवीय कमजोरियों को स्वीकार करने में नहीं हिचकते।

किताब के बारे में
किताब- दियासलाई (आत्मकथा)
लेखक -कैलाश सत्यार्थी
प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन
पेपरबैक किताब का मूल्य – 479 रुपये