Book Reviews : Ambedkar, Islam Aur Vampanth. स्वतंत्रता के बाद हुए पहले आम चुनाव में डॉ. अम्बेडकर को हराने के लिए वामपंथियों ने अपनी सारी शक्ति लगा दी थी। मार्च 1952 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय-समिति ने विशेष रूप से डॉ अम्बेडकर के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें उन्हें साम्राज्यवादी समर्थक और अवसरवादी नेता बताते हुए शोषित और वंचितों को बरगलाने वाला नेता बताया गया। समय-समय पर डॉ. अम्बेडकर ने भी वामपंथियों के खिलाफ अपनी घृणा का परिचय दिया है। सितंबर 1937 में उनकी अध्यक्षता में मैसूर में दलित वर्ग की जिला परिषद की बैठक हुई थी। उन्होंने अपने संबोधन में कहा- “मेरी कम्युनिस्टों में जाकर मिलने की तनिक भी संभावना नहीं है। अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करने वाले वामपंथियों का मैं कट्टर शत्रु हूं।”
इतने विरोधाभास के बाद भी वामपंथी आज डॉ. अम्बेडकर का नाम जप रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि 90 के दशक में पूरे विश्व में वामपंथ की चूले हिल गई थी। आम लोगों की नज़रों में मार्क्स और लेनिन अछूत बन चुके थें। ऐसे में वामपंथियों को समझ आ गया कि उन्हें अब किसी भारतीय को अपना नायक बनाना पड़ेगा और तब उन्हें डॉक्टर अम्बेडकर सबसे उपयुक्त व्यक्तित्व लगें। ऐसे परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि सामान्य भारतीय वामपंथ पर अम्बेडकर के विचार को जाने।
लेखक मिथिलेश कुमार सिंह ने अपनी पुस्तक में मीम-भीम वाले गठजोड़ पर तार्किक प्रहार किया है। इस भीम, मीम में भीम का अर्थ डॉक्टर अम्बेडकर हैं, और मीम का अर्थ मुसलमान हैं; यानी, दलित-मुस्लिम एकता। लेखक की पीड़ा है कि पूरे देशवासियों की एकता क्यों नहीं, केवल दलित मुस्लिम एकता ही क्यों? इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि इस प्रयास के पीछे सामाजिक एकता की बात नहीं की जा रही है; बल्कि, हिन्दू समाज को खंडित कर अपने-अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने का प्रयास किया जा रहा है। यह जय भीम, जय मीम का अवैध नैक्सस देश को दूसरे विभाजन की ओर ले जा रहा है। इतिहास अपने को दुहरा रहा है।
आजादी के पहले मुस्लिम लीग ने भी, दलित-मुस्लिम एकता की बात की थी। तत्कालीन बड़े दलित नेता जोगेन्द्र नाथ मंडल उनकी बातों में आ गये थें और इस मुद्दे पर जिन्ना का समर्थन किया था। जिन्ना इस जुमले का प्रयोग कर कुछ भारतीय क्षेत्र को दलित समर्थन की बदौलत पाकिस्तान में शामिल करवाने में सफल रहें; लेकिन, बाद में पाकिस्तान में दलितों के साथ जो हुआ, वह इतिहास के पन्नों में दिल दहला देने वाले मंजर की तरह दर्ज है।
जब बंगलादेश में दलित हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार और बलात्कार होने लगा तो असहाय हिन्दू वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री जोगेन्द्र नाथ मंडल की शरण में आयें। जोगेन्द्र नाथ मंडल एक अल्पसंख्यक मंत्री की बात का वहां का एक साधारण सिपाही तक तवज्जो नहीं देता था। भला एक काफिर मंत्री की हैसियत क्या हो सकती है एक मोमिन सिपाही के आगे? जोगेन्द्र मंडल के आंखों के सामने दलित हिन्दू लुटते और मरते रहें और वे कुछ न कर सकें। बंगलादेश के प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए बाइस प्वाइंट्स में रोते हुए जोगेन्द्र नाथ मंडल ने जो दिल दहला देने वाला पत्र लिखा है उसे आज प्रत्येक हिन्दू को पढ़ना चाहिए। इन सब विषयों को मिथिलेश कुमार सिंह ने अपनी पुस्तक में सम्मिलित किया है।
जिस डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम पर जय भीम, जय मीम का जुमला गढ़ा गया है, उस अम्बेडकर के इस्लाम पर विचार आज जन-जन तक पहुंचनी चाहिए।
दलित-मुस्लिम एकता के मुद्दे पर डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के विचार नकारात्मक थें। इस्लाम धर्म के मानने वाले लोगों का गैर-इस्लामिक लोगों के साथ भाईचारे की बात को वह स्वीकार नहीं करते थें। उनका स्पष्ट मानना था कि इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है; जो मुसलमानों एवं गैर-मुसलमानों के बीच भेद करता है। इस्लाम का भ्रातृत्व मानव का भ्रातृत्व भाव नहीं है। मुसलमानों का मुसलमानों से ही भातृत्व भाव है। यह बंधुत्व है; परंतु, इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो भी लोग इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा और शत्रुता ही है। डॉक्टर अम्बेडकर ने ऐतिहासिक संदर्भ में इस्लाम के भातृत्व भावना से सबको परिचित कराया है; और इस संदर्भ में गैर-इस्लामिक लोगों को किसी भी भ्रम में नहीं रहने के लिए चेताया है। इस्लाम का राष्ट्रवाद से कहीं भी दूर-दूर तक संबंध नहीं है। डॉ. अम्बेडकर कहते हैं कि इस्लाम में राष्ट्रवाद का कोई चिंतन नहीं है। यह राष्ट्रवाद को तोड़नेवाला मजहब है। मुसलमानों की निष्ठा जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती है; बल्कि उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका वे हिस्सा हैं। जहां कहीं इस्लाम का शासन है, वहीं उनका विश्वास है। डॉ. अम्बेडकर कहते हैं, ”इस्लाम सच्चे मुसलमानों को, भारत को अपना मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबंधी मानने की इजाजत नहीं देता है।”
मिथिलेश कुमार सिंह की अम्बेडकर, इस्लाम और वामपंथ न सिर्फ बाबा साहब अम्बेडकर के इस्लाम और वामपंथ के प्रति उनके विचारों को पाठकों के सामने रखती है, वरन आज की ताजा राजनीति में इस्लाम एवं वामपंथ के नेतृत्व द्वारा अम्बेडकर को अपना बनाने के प्रयासों—जैसे सीएए (CAA) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान—के सत्य को उजागर करती है। कभी मीम-भीम के नाम पर, तो कभी हिन्दू धर्म के विरोधी के तौर पर बाबा साहब अम्बेडकर को अपना बनाने को दोनों ही खेमे उत्सुक दिखाई देते हैं। पुस्तक में अम्बेडकर के विचारों को आज के परिप्रेक्ष्य में रख कर लेखक ने इन दोनों खेमों के कुत्सित तर्कों को बिंदुवार ध्वस्त किया है, और ये बताया है कि अम्बेडकर के विचार इस्लाम और वामपंथ, दोनों को लेकर कितने स्पष्ट थे और जिनसे ये स्थापित होता है कि वे इन दोनों के हिमायती तो बिलकुल भी नहीं थे और इसलिए इन दोनों खेमों द्वारा अम्बेडकर को अपना बताने के प्रयास एक छलावा हैं, जिससे वे आज की अपनी राजनीति का उल्लू सीधा करना चाहते हैं। डॉ. बी आर अम्बेडकर क्या सोचते थे इस्लाम और वामपंथ के बारे में? आज के इस्लामी और वामपंथी नेतृत्व में उन्हें अपना बनाने की होड़ के पीछे रंच मात्र भी सत्यता है क्या? मिथिलेश कुमार सिंह की पुस्तक इन सभी बातों को स्पष्टता से रखती है।
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(प्रस्तुत पुस्तक समीक्षा राहुल सिंह राठौड़ द्वारा की गई।)