Book Review: राजपूती शान और बहादुरी के लिए राजस्थान हमेशा महशूर रहा है। यहां 16वीं सदी के इतिहास में एक अद्भुत किरदार हैं रानी उमादे भटियाणी जिन्हें रूठी रानी के नाम से भी जाना जाता है। आखिर क्यों कहा जाता है इन्हें रूठा रानी। इसकी पूरी जानकारी और सचित्र रंगीन चित्रों से सजी उमादे पुस्तक को पढ़ना लाजवाब है। इसके लेखक डॉ.फतेह सिंह भाटी हैं।
जैसलमेर के राजा रावलूणकरण की बेटी रानी उमादे का विवाह 1530 के दशक में मारवाड़ राजा मालदेव राठौड़ के साथ हुआ था। राजा की बेवफाई से नाराज रानी पूरे जीवनभर उनसे रूठी रहीं।यहां तक न कभी राजा के पास ही गईं और न ही उनसे एक शब्द ही कहा। इस दौरान हुए मशहूर किस्सों और रानी के राजा के प्रति व्यवहार को जिक्र लेखक ने इस किताब में बखूबी किया है।
Book Review: कहानी के बीच में राजस्थानी दोहों का प्रयोग
लेखक ने अपनी किताब के अंदर कवि आसाणंद का एक बहुत ही प्रसिद्ध राजस्थानी दोहे का जिक्र भी इसमें किया है। माणे रखे तो पीव तज, पीव तजे रख माण, दो-दो गयद न बंधहि ऐके कबू ठांण।। इसका अर्थ है कि आत्मसम्मान को रखना है तो अपने प्रियतम को छोड़ और प्रियतम को रखना है आत्मसम्मान को छोड़। एक ही ठाण यानी जगह पर दो-दो हाथी बांधे नहीं जा सकते। यानी पूरी तरजीह आत्मसम्मान को दी गई है।
डॉ.फतेह सिंह भाटी ने किताब के जरिये मध्यकालीन राजस्थानी संस्कृति, इतिहास और रजवाड़ों में चलने वाले षडयंत्रों का भी जिक्र किया है।
डॉ.भाटी ने मध्यकालीन भारत में महिलाओं की स्थिति और पुरुष प्रधान समाज का भी जीवंत चित्रण उपन्यास के माध्यम से किया है। इसके साथ ही पौरुषिक अहंकार का प्रतिकार करती स्त्री चेतना को भी रेखांकित करता है।
उपन्यास की भाषा कथानक के अनुरूप है और रचना को प्रमाणिकता भी प्रदान करती है।गौरतलब है कि रूठी रानी के नाम से अनेक साहित्यकारों ने रचनाएं लिखीं हैं। जिनमें कलम के सिपाही प्रेमचंद का नाम भी शामिल है।
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