पुस्तक: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और हमलोग
लेखक: डॉ. सुरेश कुमार
प्रकाशक: तक्षशिला प्रकाशन
हार्डकवर, पेज: 256
मूल्य: रु. 650/-
डॉ. सुरेश कुमार की पुस्तक “आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और हम लोग” हिंदी जगत में तकनीक को आम जन-जीवन से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है। आज जब AI दुनिया को तेज़ी से बदल रहा है, तब हिंदी में ऐसी पुस्तकें बेहद दुर्लभ हैं जो तकनीक को जटिल सिद्धांतों से मुक्त कर उसे मनुष्य के अनुभवों, समस्याओं और दैनिक उपयोग में उतारकर समझाएँ। सुरेश कुमार ने इसे अपना ध्येय बनाया है—और यही इस पुस्तक को विशिष्ट बनाता है।
AI अब दूर की चीज़ नहीं रही…
पुस्तक की भूमिका में जिस सहजता से यह बताया गया है कि “तकनीक अब दूर की चीज़ नहीं रही; वह आपके जेब, आपकी आवाज़ और आपके जीवन के फैसलों में शामिल हो चुकी है,” वह पंक्ति पूरी पुस्तक की संवेदना और दिशा को परिभाषित करती है।

यह पुस्तक विशेष रूप से उन पाठकों के लिए लिखी गई है जो तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन जिनकी ज़िंदगी किसी न किसी रूप में डिजिटल दुनिया से प्रभावित होती है। लेखक AI को रोबोट और लैब की परिभाषा से बाहर निकालकर जीवन की वास्तविकता में उतारते हैं—कभी किसान के हाथ में मोबाइल ऐप बनकर, कभी दुकानदार के WhatsApp चैटबॉट बनकर, तो कभी बच्चे के लिए ChatGPT जैसा अध्ययन-सहायक बनकर। पुस्तक में दिए गए उदाहरण जैसे—जब किसान मौसम व मिट्टी की जानकारी ऐप से लेता है या जब कोई दुकानदार चैटबॉट से ग्राहकों को जवाब देता है—AI की सबसे सहज, मानवीय और रोज़मर्रा की शक्ल को पाठकों के सामने रखते हैं।
AI को भारतीय संदर्भ में समझाने का प्रयास इस पुस्तक का एक और सराहनीय पक्ष है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि भारत में AI का सफर केवल तकनीक का सफर नहीं, बल्कि डिजिटल लोकतंत्र का विस्तार भी है। IndiaAI Mission, Bhashini Project, ONDC और Digital India Bhasha Daan जैसी पहलों की चर्चा पुस्तक को भारतीय समाज के संदर्भ से मजबूती देती है। लेखक पूरी साफ़गोई से कहते हैं कि तकनीक तभी जनतांत्रिक बनती है जब आम आदमी उसकी भाषा समझ सके—और यही बात उन्हें स्थानीय भाषाओं में डिजिटल साक्षरता के पक्षधर के रूप में स्थापित करती है।
पुस्तक के अध्याय इस प्रकार रचे गए हैं कि प्रत्येक पाठक—चाहे शिक्षक हो या गृहिणी, छात्र हो या दुकानदार, किसान हो या बेरोजगार युवा—अपने लिए कुछ न कुछ उपयोगी पाता है। AI टूल्स, शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, बैंकिंग, फेक कंटेंट, डिजिटल सुरक्षा, नैतिकता और सामाजिक प्रभाव जैसे विषयों को बेहद सरलता और उदाहरणों के साथ समझाया गया है। खासकर डीपफेक, नकली आवाज़ और चैटबॉट धोखाधड़ी पर लिखे गए हिस्से पाठकों को न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि डिजिटल रूप से सतर्क भी बनाते हैं।
इस पुस्तक की शैली भी उल्लेखनीय है। सुरेश कुमार किसी भी अध्याय में तकनीक को “बोझ” नहीं बनने देते। वे लगातार पाठक से संवाद करते हैं—पूछते हैं, समझाते हैं, उदाहरण देते हैं और कई बार चुनौती भी देते हैं कि “आज इसे स्वयं आज़माइए।” यह शैली पुस्तक को पाठ्यपुस्तक जैसा नहीं, बल्कि संवाद और सीखने की यात्रा जैसा बनाती है।
“आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और हमलोग” हिंदी में AI पर लिखी गई उन कम पुस्तकों में से एक है जो तकनीक को न तो भय का कारण बनाती है, न ही केवल चमत्कार बताती है। यह पुस्तक AI को मानवीय, सामाजिक और व्यवहारिक रूप में समझाती है—यह दिखाती है कि AI न केवल हमारी दुनिया बदल रहा है, बल्कि हमारी सोच, आदतों और निर्णयों को भी प्रभावित कर रहा है। यही कारण है कि यह पुस्तक डिजिटल साक्षरता, तकनीकी समानता और भविष्य की तैयारी के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बन जाती है।
समग्र रूप से देखें तो यह पुस्तक AI और आम आदमी के बीच एक सेतु की तरह है—जहाँ तकनीक डर नहीं देती, समझ में आती है; दूरी नहीं बनाती, बल्कि निकट लाती है। तक्षशिला प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह कृति हर उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है जो AI के इस नए दौर को समझना चाहता है और खुद को आने वाले डिजिटल भविष्य के लिए तैयार करना चाहता है।
‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और हम लोग’ पुस्तक को आप ऑमेजन से खरीद सकते हैं या सीधे प्रकाशक से मंगा सकते हैं। Amazon से खरीदने के लिए यहां क्लिक करें https://amzn.in/d/6njoEuB
सीधे प्रकाशक से मंगाने के लिए –
तक्षशिला प्रकाशन, 98-ए, हिंदी पार्क, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002
फोन- 011-23258802, 43528469
मेल – [email protected]
समीक्षक- अभिषेक रंजन
(पीजीटी हिंदी, विद्यालय अध्यापक, उच्च माध्यमिक विद्यालय, कन्हाईपुर, मोकामा, पटना
सह
पीएचडी शोधार्थी, हिंदी विभाग, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद)
यह भी पढ़ें:
लोकतंत्र की खामियों को ‘सुजानपुर का लोकतंत्र’ में दुरुस्त करते दिखते हैं लेखक सुरेश कुमार









