कांग्रेस ने गुजरात में जिस तरह से जिग्नेश मेवाणी के जरिए राज्य में बीजेपी का कड़ा मुकाबला किया था। अब उसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति के युवा नेता देवाशीष जरारिया को पार्टी ने अपने साथ मिला लिया है। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में जरारिया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। जरारिया को मध्य प्रदेश का ‘जिग्नेश मेवाणी’ कहा जा रहा है।
जरारिया पहले बीएसपी में थे जहां उन्होंने पार्टी के साथ युवाओं को जोड़ने की कवायद शुरू की थी। इसके अलावा सोशल मीडिया के जरिए भी बीएसपी के पक्ष में माहौल बनाने का वो काम करते थे। देवाशीष जरारिया का कहना है कि कांग्रेस में शामिल होने का मकसद मध्य प्रदेश की जनता को 15 साल के बीजेपी के शासन से मुक्ति दिलाना है। उनका दावा है कि मध्य प्रदेश में बीएसपी के लोग चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन हो ताकि राज्य में बीजेपी को सत्ता से बाहर किया जा सके, ऐसे में मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से एससी समुदाय काफी आहत है। जरारिया का आरोप है कि बीएसपी ने पिछले 20 सालों से राज्य में लीडरशिप खड़ी नहीं की है। यूपी के बीएसपी नेता ही आकर मध्य प्रदेश में राजनीति कर रहे थे। दरअसल जरारिया मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति के लोगों से जुड़े मुद्दों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं।
मध्य प्रदेश में तकरीबन 15 फीसदी अनुसूचित जाति और 21 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं। ऐसे में राज्य की 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी जीत हार का फैसला करती है। 2013 में मध्यप्रदेश में बीएसपी ने 230 सीटों में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। बीएसपी यहां 6.42 फीसदी वोट के साथ चार सीटें जीतने में सफल रही थी। राज्य 75 से 80 सीटों पर बीएसपी प्रत्याशियों ने 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। बीजेपी और कांग्रेस के बीच 8.4 फीसदी वोट शेयर का अंतर था। बीजेपी को 165 सीटें और कांग्रेस को 58 सीटें मिली थीं।
राज्य विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा करीब 30 सीटें ऐसी मानी जाती हैं, जहां पर्याप्त संख्या में आदिवासी आबादी है। 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं। ऐसे में बीएसपी के साथ गठबंधन नहीं होना क्या, कांग्रेस के लिए महंगा साबित होगा।
एपीएन ब्यूरो