संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि आज विश्व की जनसंख्या (Population) 800 करोड़ से ज्यादा हो गई है. लेकिन भारत, जहां पहले दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चों के जन्म होते थे भी आज के दौर में घटती प्रजनन दर का अनुभव कर रहा है. विश्व के कई अन्य देशों के साथ ही भारत भी गिरती प्रजनन दर का सामना कर रहा है. इसके पिछे का मुख्य कारण सरकार और अन्य स्वंय सहायता समूहों द्वारा चलाए जा रहे कैंपेन हैं जो परिवारों को दो बच्चे से ज्यादा न पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा आज बताया गया कि दुनिया की आबादी (Population) आज यानि 15 नवंबर 2022 को 8 बिलियन तक पहुंच गई है, जिसमें चीन और भारत में दुनिया के एक तिहाई से अधिक आबादी हैं. विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की आबादी 138 करोड़ है, जो विश्व बैंक के ही चीन की आबादी के अनुमान 140 करोड़ होने से थोड़ा ही कम है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत 2023 तक दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा. लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि 2011 के बाद से औसतन 1.2 फीसदी रही है, जबकि इससे पिछले 10 वर्षों में यह 1.7 फीसदी थी. इसमें आगे ओर भी कमी होने की उम्मीद जताई जा रही है.
क्या बताती है रिपोर्ट ?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) जो 2019-2021 के लिए जारी कि गई मूल्यांकन अवधि के दौरान गिरकर 2 हो गई, जो 1992-93 में 3.4 थी. सरकार का कहना है कि देश में गर्भ निरोधकों के बढ़ते उपयोग और लड़कियों में बढ़ती शिक्षा ने प्रजनन दर में गिरावट में बड़ा योगदान दिया है. रिपोर्ट के अनुसार परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल 2019-21 में बढ़कर 66.7 फीसदी हो गया, जो 2015-16 में मात्र 53.5 फीसदी था.
Population में हो रही वृद्धि के पिछे विशेषज्ञ एक प्रमुख कारण लोगों के जीवन काल को बढ़ना भी मानते हैं. 2019 में दुनिया में औसत जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 72 साल थी, जो 1990 की तुलना में यह नौ वर्ष अधिक है. अनुमान के अनुसार 2050 तक औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ कर 77 वर्ष हो जाने का अनुमान है.
हालांकि कोविड-19 महामारी के चलते 2021 में औसत जीवन प्रत्याशा दर में एक साल की गिरावट आई. बीते वर्ष यह 71 वर्ष थी. औसत जीवन प्रत्याशा के मामले में भी दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ी असमानता है. मसलन, धनी देशों की तुलना में आम तौर पर गरीब देशों में लोग सात वर्ष कम जीवन जीते हैं.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या कुल आबादी में 16 फीसदी हो जाएगी जो अभी दस फीसदी के करीब है. इसके अलावा दुनिया की आधी से भी ज्यादा आबादी अब एशिया में है. अकेले दक्षिण एशिया में दुनिया के 26 फीसदी लोग निवास करते हैं.
2100 तक 1,000 करोड़ के पार जाने का अनुमान
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि 2030 तक दुनिया की आबादी बढ़कर 850 करोड़ और 2050 तक 970 तक पहुंच जाएगी. वहीं, 2100 तक 1,040 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. इससे पहले दुनिया की आबादी 11 जुलाई 1987 को 500 करोड़, 1998 में 600 करोड़, 2011 में 700 करोड़ थी जो बढ़कर 800 करोड़ हो गई है. 11 जुलाई 1987 को 500 करोड़ की आबादी होने के कारण ही हर साल 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ भी मनाया जाता है.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र की गणना के अनुसार दुनिया में आबादी बढ़ने की रफ्तार घट रही है. इसके अनुसार 2080 में विश्व जनसंख्या अपने चरम पर पहुंच जाएगी ओर उसके बाद आबादी में गिरावट शुरू हो जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 61 ऐसे देश हैं, जिनकी आबादी में अब यानि 2022 से 2050 के बीच एक फीसदी गिरावट आएगी. जनसंख्या में सबसे ज्यादा गिरावट लातविया, बुल्गारिया, सर्बिया, लिथुआनिया और यूक्रेन में आने का अनुमान है. इन देशों में कुल मिला कर आज की तुलना में जनसंख्या 20 फीसदी तक घट सकती है.