पर्यावरण के रक्षक और ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले सैकड़ों हरे-भरे पेड़ों पर आरियां चला दीं गईं। पौड़ी-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर मल्ली श्रीकोट क्षेत्र के समीप 130 हरे पेड़ो की आड़ में 50 से अधिक हरे पेड़ों को अवैध तरीके से काट दिया गया। जिससे वन विभाग और वन निगम की कार्यप्रणाली सवालो के घेरे में है। काटे गए 50 हरे-भरे चीड़, बांज और अन्य प्रजाति के पेड़ों पर जहां वन अधिनियम कानून के मुताबिक न तो पेड़ों पर कोई नंबरिंग की गई है और न ही किसी तरह से मार्किंग। ऐसे में वन विभाग और वन निगम द्वारा पेडों के कटान में बरती गयी अनियमिता वन माफियाओं को फायदा पहुंचाने की ओर इशारा कर रही हैं।
दरअसल मल्ली श्रीकोट से बरसूडी के लिए सरकार द्वारा सड़क स्वीकृत की गयी है। जिसके दायरे में 130 हरे-भरे चीड़, बांज और अन्य प्रजाति के पेड़ आ रहे हैं। ऐसे में इन हरे पेड़ों की आड़ में 50 से अधिक पेड़ों का कटान सवाल खड़े कर रहा है। वन विभाग ने इसे वन निगम की लापरवाही करार दिया है। डीएफओ ने पूरे प्रकरण की जांच के लिए वन विभाग की टीम को मौके पर भेजकर स्थिति का जायजा लेने के निर्देश देने के साथ ही कठोर कार्रवाई का दावा किया है।
इन पेड़ों की कटाई के पीछे रसूखदार लोगों का हाथ होने की संभावना जताई जा रही है। चंद दिनों पहले भी पौड़ी में कुछ लोगों ने बांज, बुरांस जैसे कई अन्य प्रजाति के कीमती पेडों को काट डाला था। क्योंकि इन पेड़ों की वजह से थैलीसैण क्षेत्र में बैजरो, जोगीमढी-सराईखेत होते हुए जनपद अल्मोड़ा को जोड़ने वाले मोटरमार्ग को बनाने की अनुमति साल 2006 से ही लंबित थी। ऐसे में वन विभाग मोटरमार्ग के निर्माण की अनुमति नहीं दे रहा था। पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले बांज बुरांस जैसे कई अन्य प्रजाति के पेडो की संख्या बहुत ही अधिक थी। जिससे मोटरमार्ग का निर्माण भी कार्य पिछले 12 सालों से लटका पडा था। तब भी हरे-भऱे पेडों को रातों रात काटने पर डीएफओ गढ़वाल लक्ष्मण सिंह ने हैरानी जताई जताई थी, कड़ी से कड़ी कार्रवाई का दावा किया था लेकिन जांच में क्या हुआ किसी को नहीं पता। अब एक बार फिर बड़े लोगों की शह पर वन विभाग की नियमावली को ठेंगा दिखाते हुए रातों रात कुछ अज्ञात लोगों द्वारा बिना किसी अनुमति के ही इन हरे पेडों पर आरियां चला दीं गईं। ऐसे में उम्मीद तो यही है कि, पुलिस-प्रशासन मामले की कड़ाई से जांच करेगा और दोषी जेल जाएंगे। लेकिन ये तभी संभव होगा जब सरकार और उसकी मशीनरी चाहेगी। लेकिन सवाल तो यही है कि, एक तरफ उत्तराखंड प्रकृति से खिलवाड़ की वजह से उसके कोप का शिकार हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ शुद्ध हवा देने के साथ ही, बाढ़ और भूस्खलन रोकने में अहम भूमिका निभाने वाले हरे-भरे पेड़ों को लगातार काटा जा रहा है। ऐसे में साफ है कि, इंसान पेड़ों पर नहीं अपनी सांसों पर आरियां चला रहा है।
एपीएन ब्यूरो