क्या है TRF, जिसने पहलगाम में 28 बेकसूर लोगों की ले ली जान?

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जम्मू कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को पर्यटकों पर आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 28 लोगों को जान गंवानी पड़ी है। हमले के पीछे आतंकी संगठन टीआरएफ का हाथ बताया जा रहा है। आइए आपको टीआरएफ के बारे में बताते हैं। दरअसल बीते वक्त में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कई धड़े बन चुके हैं, जिनमें से एक है ‘The Resistance Front’ (TRF)। इसे खास तौर पर कश्मीर के लिए बनाया गया है। लेकिन इसके पीछे लश्कर का ही हाथ है।

पहली बार 2019 में अपने अस्तित्व की घोषणा करने वाले इस संगठन ने तेजी से जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया। हालांकि TRF को एक नया और स्थानीय विद्रोही संगठन बताया गया, लेकिन जांच एजेंसियों के अनुसार यह वास्तव में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही एक नया चेहरा है। TRF का नाम सबसे पहले 2019 में तब सामने आया जब अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ी ऑनलाइन गतिविधियाँ बढ़ीं। TRF ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक कथित “सशस्त्र प्रतिरोध” की शुरुआत की बात कही। इसका नाम “The Resistance Front” यानी “प्रतिरोध मोर्चा” रखा गया ताकि इसे एक स्थानीय आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

यह संगठन आतंकी हमलों की ज़िम्मेदारी अपने नाम से लेना शुरू कर चुका है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की संलिप्तता को छुपाया जा सके।

प्रमुख गतिविधियाँ और हमले

  1. सुरक्षा बलों पर हमले
    TRF ने जम्मू-कश्मीर में कई सुरक्षाबलों पर हमले किए हैं, जिनमें CRPF, पुलिस और सेना के जवानों को निशाना बनाया गया। TRF आमतौर पर सोशल मीडिया पोस्टों के जरिए हमलों की जिम्मेदारी लेता है।
  2. गैर-कश्मीरी नागरिकों पर हमला
    2021 और 2022 में, कश्मीर घाटी में कई गैर-कश्मीरी श्रमिकों, शिक्षकों और दुकानदारों पर हुए हमलों की जिम्मेदारी TRF ने ली थी। इसका मकसद भय का माहौल बनाना और बाहर से आने वाले लोगों को डराकर भगाना था।
  3. सॉफ्ट टारगेट की रणनीति
    TRF का हमला करने का तरीका अपेक्षाकृत नया है। यह संगठन आमतौर पर अकेले या दो आतंकियों को हथियार देकर भेजता है, जो आम नागरिकों या छोटे सुरक्षाबलों की टुकड़ियों पर अचानक हमला करते हैं और भीड़ में गायब हो जाते हैं।

आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा से संबंध
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के अनुसार TRF का सीधा संबंध लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से है। TRF का गठन लश्कर की छवि को “आतंकवादी संगठन” के टैग से बचाने के लिए किया गया था, ताकि वह “स्थानीय प्रतिरोध” का जामा पहनकर अंतरराष्ट्रीय जांच से बच सके।

विशेषज्ञों के अनुसार, लश्कर अब सीधे नाम से ऑपरेशन नहीं करता, बल्कि ऐसे छद्म संगठनों के माध्यम से गतिविधियाँ संचालित करता है।

ऑनलाइन प्रचार और भर्ती
TRF का एक बड़ा हथियार है — सोशल मीडिया। टेलीग्राम, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर यह संगठन अपने भड़काऊ संदेश प्रसारित करता है। इसमें कश्मीरी युवाओं को “जिहाद” के नाम पर उकसाया जाता है।

यह संगठन फ़ेक न्यूज़, मॉर्फ की गई तस्वीरों और अफवाहों का उपयोग करके घाटी में तनाव और भ्रम की स्थिति पैदा करने का भी काम करता है।

अंतरराष्ट्रीय और भारत सरकार की प्रतिक्रिया
TRF को अवैध संगठन घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। भारत सरकार ने इसे यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डालने की सिफारिश की है। एनआईए ने इसके कई सदस्यों को गिरफ्तार किया है और इसके फंडिंग नेटवर्क पर कार्रवाई शुरू की है।

भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ मानती हैं कि TRF का उद्देश्य कश्मीर में आतंकवाद को ‘लोकल रेजिस्टेंस मूवमेंट’ के रूप में प्रस्तुत करना है, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा सके।

प्रमुख गिरफ्तारियाँ और ऑपरेशन
बशीर अहमद बाबा जैसे कुछ स्थानीय कश्मीरियों को TRF से संबंध के आरोप में पकड़ा गया है।

नौगाम, पुलवामा, शोपियां और श्रीनगर में TRF के खिलाफ कई एनकाउंटर किए गए हैं जिनमें उसके कई कमांडर मारे गए हैं।

एनआईए ने TRF के डिजिटल और आर्थिक नेटवर्क पर भी नजर रखना शुरू कर दिया है।

स्थानीय और वैश्विक रणनीति
TRF की रणनीति केवल गोली-बंदूक तक सीमित नहीं है। यह संगठन मनोवैज्ञानिक और डिजिटल युद्ध भी लड़ रहा है। इसका मकसद युवाओं को यह दिखाना है कि TRF एक ‘मुक्ति संग्राम’ का हिस्सा है और भारत सरकार ‘दमनकारी ताकत’ है। यह एक वैश्विक आतंकवादी संगठन के रूप में कार्य तो कर रहा है, लेकिन छवि लोकल बनाकर प्रचारित करता है।

लश्कर-ए-तैयबा
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) एक इस्लामिक चरमपंथी संगठन है, जिसकी स्थापना पाकिस्तान में हुई थी। यह संगठन विशेष रूप से भारत पर हमलों के लिए कुख्यात है, और इसे दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों में गिना जाता है।

लश्कर-ए-तैयबा की शुरुआत 1987 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुई थी। इसके पीछे हाफ़िज़ मुहम्मद सईद, अब्दुल्ला अज़ाम और ज़फ़र इक़बाल का हाथ था। शुरू में यह संगठन अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ के विरुद्ध मुजाहिदीन लड़ाई में शामिल था। लेकिन जल्द ही इसका ध्यान भारत, विशेषकर जम्मू-कश्मीर की ओर केंद्रित हो गया।

इस संगठन की विचारधारा क़ुरआन की जिहादी व्याख्या पर आधारित है, जिसमें ‘ग़ैर-मुस्लिमों’ के खिलाफ युद्ध को धार्मिक कर्तव्य बताया गया है। हाफ़िज़ सईद इस विचारधारा का मुख्य प्रचारक रहा है, और पाकिस्तान में इसके ‘दार-उल-अर्शद’ में युवाओं को ब्रेनवॉश किया जाता है।

लश्कर द्वारा इन आतंकी साजिशों को अंजाम दिया गया है

  1. मुंबई हमला (26/11), 2008
    लश्कर-ए-तैयबा का सबसे भयावह और कुख्यात हमला 2008 में मुंबई में हुआ। दस आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर तीन दिन तक मुंबई को आतंकित किया, जिसमें 170 से अधिक लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए। ताज होटल, ओबेरॉय होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और नरीमन हाउस जैसे प्रमुख स्थानों पर हमला हुआ। अजमल कसाब नामक एकमात्र ज़िंदा पकड़े गए आतंकी ने इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा की संलिप्तता को प्रमाणित किया था।
  2. अक्षरधाम मंदिर हमला (2002)
    गांधीनगर, गुजरात स्थित अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले में भी लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों का हाथ था। इस हमले में 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
  3. पठानकोट एयरबेस हमला (2016)
    भारतीय वायुसेना के पठानकोट एयरबेस पर हमला लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों की मिलीभगत से हुआ था। इसमें 7 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे।

लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से काम करता है। यहां युवाओं को आतंकी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें हथियार चलाना, विस्फोटक बनाना, और छिपकर हमला करना शामिल होता है। माना जाता है कि आतंकी संगठन को पैसा पाकिस्तान के कई इस्लामिक संगठनों, खाड़ी देशों के चंदे, और हवाला नेटवर्क से मिलता है।

लश्कर, अपने आतंक को जायज ठहराने के लिए धार्मिक तर्कों का सहारा लेता है और अपने आतंकवाद को ‘जिहाद’ की संज्ञा देता है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स और खुफिया एजेंसियों के अनुसार, लश्कर को पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) से सहायता मिलती है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।

लश्कर का राजनीतिक चेहरा ‘जमात-उद-दावा’ (JuD) के रूप में कार्य करता है। अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा को 2001 में आतंकवादी संगठन घोषित किया था। 26/11 के बाद भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से पाकिस्तान पर दबाव डाला कि वह हाफिज सईद और उसके सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई करे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध लगाया।

हालाँकि, पाकिस्तान में हाफिज सईद को कई बार नजरबंद किया गया, लेकिन उसे सजा दिलवाने में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।