जिस नर्मदा नदी पर सरदार बांध की नींव प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 56 साल पहले रखी थी, रविवार को उस बांध का उद्धाटन कर पीएम मोदी ने देश को समर्पित कर दिया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस बांध के निर्माण को रोकने के लिए बड़े-बड़े षड़यंत्र हुए हैं, अफवाह फैलाने वालों ने खूब झूठ फैलाया है।

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एक तरफ जहां बांध के उद्घाटन का महोत्सव पूरा गुजरात मना रहा है तो वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के लोगों में मातम सा छाया हुआ है। इस योजना की वजह से कम से कम 50 हजार परिवार विस्थापित हुए हैं। इसके अलावा नदी के निचले इलाको में मछली पालन पर निर्भर रहने वाले 10 हजार परिवारों की आजीविका पूरी तरह खत्म हो गई है। जिसे लेकर गांव के लोग नदी में बैठकर विरोध कर रहे हैं। इस विरोध में सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक मेधा पाटकर 30 महिलाओं के साथ मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के छोटा बड़दा गांव के घाट पर जल सत्याग्रह कर रही हैं।    

यह योजना कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के लिए बनीं थी, जो गुजरात के सुखाग्रस्त इलाके हैं। यहां पानी देने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में यह योजना बनी थी। लेकिन आज तक इन इलाकों में पानी नहीं पहुंचा है।

बता दें सरदार सरोवर बांध की नींव भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 को रखी थी। यह नर्मदा नदी पर बना 800 मीटर ऊंचा बांध है। कंक्रीट का बना ये बांध भारत का तीसरा सबसे बड़ा बांध है, जिसमें 30 दरवाजे हैं। हर दरवाजे का वजन 450 टन है, जिसे बंद करने में एक घंटे का समय लगता है। ये दरवाजे मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, बड़वानी, धार, धर्मपुरी, महाराष्ट्र के 33 गांव और गुजरात के 19 गांव की तरफ खुलते हैं। अगर बांध के 30 गेट खुल जाते हैं तो एक इतिहास बन जाएगा यानी ये सारे गांव पानी में डूब जाएंगे। इसी के विरोध में गांव वाले जल सत्याग्रह कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि इस परियोजना में अभी तक जितनी लागत लग चुकी है, उतनी ही और लगने की संभावना है।

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