हिन्दी साहित्य में आधुनिक बौद्धिक संवेदना का सूत्रपात करनेवाले रचनाकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का नाम शीर्ष पर है। शायद ही किसी रचनाकार ने साहित्य में इतने प्रयोग किए हों जितने अज्ञेय ने किए । उनकी एक कविता है सांप….
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ–(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना–
विष कहाँ पाया?
आज अज्ञेय होते तो स्वयं ही बोलते ही उनकी कविता में गलत शब्दों का प्रयोग हुआ है। आप जानना चाहेंगे क्यों…वजह जानकर कर आप गुस्से से भर जाएंगे…और कहेंगे … सांप इंसान से कई गुना बेहतर हैं।
खबर केरल के मल्लापुरम की है। केरल जिसे #Gods_Own_Country यानि “भगवान का अपना देश” कहा जाता है। इस केरल को मलप्पुरम जिले के कुछ इंसानों ने इस तरह से शर्मसार किया है हैवानों को भी शर्म आए। यहां के पढ़े लिखे इंसानों ने क्रूरता की सीमाओं को पार कर साबित किया है कि इनकी सारी विद्वता किसी काम की नहीं। यह भी सच है, पूरे राज्य को कुछ लोगों की करतूतों के लिए दोष नहीं दिया जा सकता लेकिन कुछ लोग बार-बार केरल को ‘सबसे शिक्षित राज्य’ कहते हैं तो ये सवाल उनसे ही पूछे जाएंगे ।
यहां नजदीक के जंगलों से एक गर्भवती हथिनी खाने की तलाश में भटकते हुए 25 मई को पास के गांव में आ गई थी। उसी समय कुछ लोगों ने उसे अनानास खिला दिया। खिलाने वाले ने उस फल में बारुद भर दिया था। बेजुबान जानवर ने इंसान पर किया भरोसा लेकिन मिला धोखा। उसे क्या पता था कि जिस फल को वो मनुष्यों का प्यार समझ कर खा रही है, उसके भीतर विस्फोटक भरे पड़े हैं जो उसके मुँह में ही फट जाऍंगे। खाते ही उसके मुंह में विस्फोट हुआ, जिस कारण उसका जबड़ा बुरी तरह से फट गया और उसके दांत भी टूट गए। हथिनी दर्द से तड़प उठी। उसे असह्य पीड़ा हो रही थी, जीभ पर छाले पड़े हुए थे, शरीर में ऑक्सीजन नहीं जा रहा था और फेंफड़े जवाब दे रहे थे और वायु-नली जाम हो रही थी। बेजुबान को जब कुछ समझ नहीं आया तो वह पास की वेलियार नदी में जा खड़ी हुई ताकि ठंढे पानी से उसका दर्द कुछ कम हो सके। अपने दर्द को कम करने के लिए वह पूरे समय बस बार-बार पानी पीती रही। पर उस इंसानों की बस्ती में किसी ने उसकी सुध नहीं ली। इस बार न तो गज को किसी मगरमच्छ ने नहीं पकड़ा था और ना ही वहां नारायण थे कि आकर बचा लेते और सुदर्शन चक्र से मगर को काट डालते। तिल तिल कर मरती हथिनी की आखिर कार दो दिनों बाद मौत हो गई।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार उसकी उम्र 14-15 साल थी। अधिकारियों ने बताया कि समय पर उस तक मदद नहीं पहुंचाई जा सकी। बाद में पोस्टमार्टम में यह मालूम हुआ कि हैवानों ने एक नहीं दो दो जानें ली थीं। हथिनी के पेट में उसका बच्चा पल रहा था। पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक ने लिखा कि किसी जानवर की ऐसी दर्दनाक मौत उसने अपनी जिंदगी में नहीं देखी। डॉक्टर ने जब उस भ्रूण को देखा , रो पड़ा और कहा कि ये ये क्रूरता की चरम सीमा है। भारत के सभी धर्मग्रंथों में भ्रूणहत्या को सबसे बड़ा महापाप बताया गया है। यहाँ तो एक निर्दोष प्राणी के साथ-साथ उसके अजन्मे बच्चे को भी मार डाला गया। जिस राज्य को ‘God’s Own Country’ कहते हैं, वहाँ ऐसी करतूत …धिक्कार है!
जानवर बहुत जल्द ही इंसानों पर भरोसा कर लेते हैं, लेकिन ऐसे में इंसान उनके साथ क्या करते हैं। इस घटना ने जानवरों की सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। हाथी तो शुद्ध शाकाहारी जीव है। वो तो इंसान क्या, चींटी तक को नहीं खाता । सोचने वाली बात है वो गंभीर रूप से घायल थी लेकिन इसके बावजूद भी उसने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और ना हमला किया। छले जाने के बावजूद उस हथिनी ने मानवों को नुकसान नहीं पहुँचाया। दर्द से बेहाल हो इधर उधर दौड़ती-भागती रही लेकिन किसी संपत्ति को या किसी की जान लेने की कोशिश नहीं की। इंसान पर विश्वास करने की उसे ये सजा मिली, वह भलाई से भरी हुई थी।
भारत के सनातन हिन्दू धर्म में हर देवी-देवताओं के वाहन के रूप में किसी न किसी पशु-पक्षी को दिखाया जाना अकारण नहीं हैं। चूहा खेतों से हमारा अन्न खाता है लेकिन हम गणेश जी के वाहन के रुप में पूजते हैं। उल्लू को हर जगह मनहूस मानते हैं, वो भी हमारे चौखट पर आए तो उसे लक्ष्मी का वाहन मान प्रणाम करते हैं। हाथी को तो साक्षात महादेव पुत्र गणेश जी का रूप और इंद्र की सवारी माना गया है। भैंस को धर्मराज का वाहन बताया गया है। इसी तरह शिव का बैल, कार्तिकेय का मोर, विष्णु का गरुड़, ब्रह्मा का हंस और माँ दुर्गा का शेर ये सभी श्रद्धा के पात्र हैं। यह अकारण नहीं था कि हमारे मनीषियों ने जीव जंतुओं को धर्म से जोड़ दिया।
केरल की इस दिल दहला देने वाली घटना में वहां की कम्युनिस्ट सरकार में अभी तक किसी को नहीं पकड़ा गया है। संयोग की बात यह भी है कि यह सबसे शिक्षित राज्य है, यहां के लोगों ने कम्युनिस्ट सरकार को चुना है और दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन ISIS में सबसे ज्यादा लोग यहीं से जाते हैं।
आज अज्ञेय होते तो निस्संदेहअपनी कविताओं की शब्दावली बदल देते। वो इंसानों से ही सवाल पूछते कि कहां से सीखी यह फितरत? अभी तक सभ्य नहीं बने हो? हमें माफ कर दो उमा , हम इंसान ही इस दुनिया में रहने के योग्य अभी तक नहीं बने हैं।
- मनीष राज