Padmanabhaswamy temple के खातों के ऑडिट मामले में Supreme Court ने फैसला रखा सुरक्षित

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Padmanabha Swami Narayan Temple

Padmanabhaswamy temple के खातों के ऑडिट मामले में Supreme Court ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। आज वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ट्रस्ट के लिए नही बल्कि केवल मंदिर के ऑडिट के लिए पारित किया गया था।

वही वकील आर बसंत ने कहा कि मंदिर ट्रस्ट के अंतर्गत चलता है। ऐसे में मंदिर और ट्रस्ट दोनों का ऑडिट कराया जाना चाहिए। प्रशासन समितियों का भी यही मानना है। इस पर वकील दातार ने कहा कि याचिका में ट्रस्ट पक्षकार ही नहीं है। ऐसे मे ट्रस्ट के ऑडिट का सवाल ही पैदा नहीं होता।

आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि उस वक्त हम इस मुद्दे पर थे कि प्रशासन कौन चलाएगा। यह भी कहा कि हम दिन-प्रतिदिन चलने वाली प्रक्रिया के मामलों कि सुनवाई नहीं करते हैं।

CA की फर्म ने मंदिर के पिछले 25 साल का रिकॉर्ड जमा करने को कहा

दरअसल पद्मनाभ मंदिर के ऑडिट कर रही CA की फर्म ने मंदिर के पिछले 25 साल का आय व्यय का रिकॉर्ड जमा करने को कहा था। CA की इस मांग के खिलाफ ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसपर सुनवाई की गई। मंदिर ट्रस्ट ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि मंदिर के धार्मिक अनुष्ठानों के संचालन के लिए 1965 में स्वतंत्र संस्था गठित की गई थी। मंदिर ट्रस्ट की इसमे कोई भूमिका नही है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर को लेकर 13 जुलाई 2020 को केरल हाई कोर्ट के जनवरी 2011 के फैसले को पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर का प्रशासन और नियंत्रण पूर्ववर्ती त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा किया जाएगा।

क्या है इस मंदिर की कहानी?

ये मंदिर केरल की राजधानी तिरूवनंतपुरम में है और आज़ादी से पहले इस पर त्रावणकोर के राजा का अधिकार था। भारत की आज़ादी के बाद जब त्रावणकोर और कोचिन रियासतों को मिलाया गया तो दोनों के बीच मंदिर को लेकर समझौता हुआ। उसके हिसाब से इस मंदिर के प्रशासन का अधिकार मिला त्रावणकोर के आख़िरी शासक को, जिनका नाम था चिथिरा थिरूनल। जब 1991 में उनकी मृत्यु हुई तो उनके भाई उत्तरादम वर्मा को इसकी कस्टडी मिली। साल 2007 में उन्होंने दावा किया कि इस मंदिर का ख़ज़ाना उनके शाही परिवार की संपत्ति है।

इसके ख़िलाफ़ कई लोगों ने कोर्ट में मामला दायर किया. एक निचली अदालत ने मंदिर के कमरों को खोलने पर रोक लगा दी थी। लेकिन फिर 2011 में केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो इस मंदिर के नियंत्रण के लिए एक ट्रस्ट बनाए। उसी साल शाही परिवार इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने इस फ़ैसले पर स्टे लगा दिया और कहा कि इस मंदिर के कमरों में जो मिलता है उसकी लिस्ट बनाई जाए।

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