सपा सरकार के वक्त में बाटें गए यश भारती सम्मान हमेशा से ही प्रश्नों में रहा है। लेकिन एक आरटीआई में सामने आया इस अवॉर्ड का सच और भी चौंकाने वाला है। आरटीआई के इस जवाब में बताया गया है कि ‘समाज में सामाजिक जागरूकता फैलाने’ के लिए दिए जाना वाला यश भारती अवॉर्ड यूं ही बांट दिया गया था। यह अवॉर्ड साफ तौर पर संरक्षण और पक्षपात के दृष्टिकोण से दिया गया था। इसमें कहीं ‘समाज’ और ‘सामाजिक जागरूकता’ नहीं थी।

बता दें कि इस सम्मान की शुरुआत लोगों के भीतर समाज के प्रति जागरुकता को बढ़ाने के लिए की गई थी, जिसके तहत विजेता को एकमुश्त 11 लाख रुपए दिए जाते हैं साथ ही हर महीने 50 हजार रुपए की पेंशन भी दी जाती है। इस पुरस्कार की शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने 1994 में की थी, लेकिन बाद में इस पुरस्कार को भाजपा और बसपा की सरकारों ने बंद कर दिया था।

आरटीआई की इस रिपोर्ट की माने तो इस दौरान दिए गए 200 यश भारती पुरस्कार विजेताओ के नाम की जानकारी आरटीआई के जरिए मांगी थी, जिसमें से 142 लोगों के बारे में जानकारी मुहैया कराई गई है। इस जानकारी से इस बात का खुलासा होता है कि ज्यादातर लोगों को यूं ही यह पुरस्कार लोगों की संस्तुति के आधार पर दे दिए गए थे। इस पुरस्कार को हासिल करने वाले ज्यादातर लोग समाजवादी पार्टी के हैं और अधिकतर लोगों के नामों की संस्तुति मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से की गई है। हालांकि इन पुरस्कारों बांटने का जिम्मा संस्कृति मंत्रालय के पास था।

इस खुलासे में मालूम हुआ है कि यह सम्मान 21 ऐसे लोगों को दिया गया जिन्होंने खुद मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर इस सम्मान की मांग की थी। फिर यह सम्मान सपा के नेताओं जैसे शिवपाल यादव, आजम खां और राजा भईया जैसे लोगों के कहने पर दे दिया गया।

गौरतलब है कि योगी सरकार जिन लोगों को यश भारती सम्मान दिया गया है उसकी जांच कर रही है, साथ ही सरकार लाइफटाइम पेंशन दिए जाने को रोकने पर भी विचार कर रही है।