आज Sir Syed Ahmed Khan की जयंती है। उनका जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था। सर सय्यद की पहचान समाज-सुधारक और शिक्षाविद के तौर पर है। उन्होंने खासकर हिंदुस्तान में मुस्लिम समाज में जागरूकता फैलाई। हालांकि सर सय्यद के बारे में जानना दिलचस्प है कि कैसे एक समय वे हिंदू मुस्लिम एकता के पैरोकार थे और बाद में ‘टू नेशन’ यानी हिंदू मुस्लिमों के लिए अलग-अलग देश की बात करने लगे।
Sir Syed Ahmed Khan की स्वामी विवेकानंद और देवेंद्रनाथ टैगोर से थी अच्छी दोस्ती
हिंदू मुस्लिम एकता को लेकर अक्सर सर सय्यद के एक बयान का हवाला दिया जाता है, “हिंदुस्तान एक खूबसूरत दुल्हन है और हिंदू और मुस्लिम उसकी दो आंखे हैं। अगर इनमें से एक को भी नुकसान पहुंचता है तो ये दुल्हन बदसूरत हो जाएगी।” चूंकि सर सय्यद की परवरिश दिल्ली में हुई थी, जहां हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय रहते थे, इसलिए वे दोनों मजहबों को समझते थे। उन्हें हिंदू धर्म ग्रंथों का भी ज्ञान था। भारत की साझी संस्कृति की वकालत करने वाले Sir Syed Ahmed Khan की स्वामी विवेकानंद और देवेंद्रनाथ टैगोर से भी दोस्ती थी। यहां तक कि वो गौ हत्या के विरोधी थे और मुसलमानों को गाय की कुर्बानी करने से रोकते थे।
उनका 27 जनवरी 1884 का एक बयान है, ”ओ हिंदुओं और मुसलमानों! क्या हिंदुस्तान के सिवाय तुम्हारा कोई दूसरा देश है? क्या तुम इस देश की मिट्टी पर नहीं रहते, क्या तुम इसके नीचे नहीं दफन होगे या इसके घाटों पर नहीं जलाये जाओगे? अगर तुम इस देश की मिट्टी में जीते मरते हो तो ध्यान रखो कि हिंदू मुसलमान महज मजहबी लफ्ज हैं, हिंदू मुस्लिम, ईसाई सभी एक राष्ट्र हैं।” यहां तक कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना के पीछे उनका मकसद सिर्फ मुसलमानों को शिक्षा देना नहीं बल्कि सभी के लिए शिक्षा के दरवाजे खोलना था।
टू नेशन थ्योरी कहां से आ गयी?
ऐसा माना जाता है कि सर सय्यद टू नेशन थ्योरी देने वाले पहले शख्स थे। 1866 में सर सय्यद ने हिंदू मुसलमानों को दो अलग राष्ट्रों के तौर पर बताया था। ऐसा माना जाता है कि उर्दू जबान के सवाल पर उनके नजरिए में ये बदलाव आया था। बाद के सालों में उन्हें लगने लगा कि अगर मुसलमानों को उनका सियासी हक नहीं मिला तो उनकी हालत क्या हो जाएगी। अगर हिंदुस्तान में लोकतंत्र आता है तो दबदबा हिंदुओं का होगा।
Sir Syed Ahmed Khan ने उस वक्त कहा था, “इस वक्त हमारा देश खराब स्थिति में है, लेकिन खुदा ने हमें मजहब की रोशनी दी है और कुरान हमें राह दिखाने को मौजूद है। अंग्रेज अभी हमारे ऊपर शासन कर रहे हैं इसलिए हमें उनके साथ दोस्ती करनी चाहिए, और वह तरीका अपनाना चाहिए जिससे उनका शासन भारत में बना रहे। हमें बंगालियों के साथ हाथ नहीं मिलाना चाहिए … हम हिंदुओं की प्रजा नहीं बनना चाहते हैं।”
एक दूसरे बयान में उन्होंने कहा, “मान लीजिए कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा तो भारत के शासक कौन होंगे? … क्या यह संभव है कि इन परिस्थितियों में दो राष्ट्र- मुसलमान और हिंदू – एक ही गद्दी पर बैठ सकते हैं और सत्ता में समान रह सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। यह आवश्यक है कि उनमें से एक दूसरे पर विजय प्राप्त करे। यह आशा करना कि दोनों समान रह सकें, असंभव और अकल्पनीय की इच्छा करना है। लेकिन जब तक एक राष्ट्र दूसरे पर विजय प्राप्त नहीं कर लेता तब तक देश में शांति कामय नहीं हो सकती है।”
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