आज शीतलाष्टमी है। हर साल 2 जुलाई को शीतलाष्टमी मनाई जाती है। इन्हें स्वच्छता एवं आरोग्य की देवी माना जाता है। कहते हैं कि मां का विधि विधान से पूजा करने पर आपके घर में रोग-दोष, बीमारी, महामारी का पलट कर भी नहीं देखती है। शीतला माता को चेचक रोग से मुक्ति की देवी के रूप में भी जाना जाता है।

शीतला माता की पूजा में एक दिन पहले बने बासी खाने का भोग लगाया जाता है, इसलिए शीतलाष्टमी को बसौड़ा भी कहते हैं। शीतलाष्टमी के दिन व्रत रख कर मां का पूजन-अर्चन करने के बाद व्रत कथा सुनने का विधान है। हम यहां आपको व्रत कथा की जानकारी बता रहे हैं।

व्रत कथा की माने तो एक गांव में क ब्राह्मण परिवार में बुजुर्ग दंपत्ति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को एक –एक संतान थी। घर में सभी मिल कर प्रेम से रहते थे, तभी शीतलाष्टमी का पर्व आया। दोनों बहुओं ने व्रत के विधान के अनुसार, एक दिन पहले ही बासौड़ा मतलब बासी भोजन मां के भोग के लिए तैयार कर लिया। लेकिन दोनों की संतानें छोटी थीं, उनको लगा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर जाए, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को ताजा खाना बना के खिला दिया। शीतला मां का पूजन करने बाद जब वो घर लौटीं, तो बच्चों को मरा हुआ देख रोने लगी। उनकी सास ने उन्हें शीतला मां को नाराज करने का फल बताया और कहा जाओ जब तक अपने बच्चे जीवित न कर लेना घर वापस नहीं आना।

दोनों बहुएं अपने मरे हुए बच्चों को लेकर भटकने लगीं ,तभी उन्हें खेजड़ी के पेड़ के नीचे ओरी और शीतला दो बहनें मिलीं। दोनों बहने गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं। बहुओं से उन बहनों की परेशानी देखी नहीं गई, उन्होंने अपना दुख भूल कर दोनों बहनों के सिर से जूएं निकालें। जूएं निकालने के बाद शीतला और ओरी ने प्रसन्न हो कर दोनों बहुओं के पुत्रवती होने की कामना की। इस पर दोनों बहुएं अपना दुख बता कर रोने लगीं। शीतला माता अपने स्वरूप में प्रकट हुईं। दोनों बहुओं को शीतलाष्टमी के दिन ताजा खाना खाने की भूल का एहसास दिलाया और इसे सेहत के लिए हानिकारक बताया। शीतला मां ने दोनों बहुओं को अपनी गलती आगे से न दोहराने की चेतावनी देते हुए दोनों के बच्चों को जीवित कर दिया। शीतला मां के साक्षात दर्शन और अपने बच्चों को पुनः जीवित पाकर दोनों बहुएं बड़ी प्रसन्नता के साथ घर लौटी और आजीवन विधि-विधान से शीतला मां की पूजा और व्रत करने लगीं। शीतला माता की कृपा से हम सब भी अपने जीवन में सेहत और आरोग्य प्राप्त करें। बोलो शीतला माता की जय…

बता दें कि शैलपुत्री मां को शीतला मां भी कहा जाता है। एक बार जब सती अपने पिता प्रजापति दक्ष के आयोजित यज्ञ में बिना किसी निमंत्रित के चली गई लेकिन सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन को स्नेह किया बाकी लोगों ने यंग्य कसा तथा भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने आप को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने तांडव करते हुये उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी फिर से भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

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