भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में जजों की नियुक्ति को लेकर चल रहे मतभेद पर विराम लग गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति से जुड़े मेमोरेंडम ऑफ प्रसीजर (MoP) को अंतिम रूप दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम नेशनल सिक्यॉरिटी क्लॉज को जोड़ने पर सहमत हो गया है। यानि इसके बाद जजों की नियुक्ति में चल रही खींचतान खत्म हो जाएगी।
गौरतलब है कि कॉलेजियम को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच विवाद कई सालों से चल रहा है। भारत सरकार जजों की नियुक्ति की पात्रता में इसे शामिल किए जाने पर अड़ा था, लेकिन कॉलेजियम इस मामले में रोड़ा अटका रहा था। चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर इस कॉलेजियम में शामिल हैं और खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इस बाबत 7 बैंठकें की, फिर MoP को ग्रीन सिग्नल दिया। इसका गठन जजों के डेटाबेस को बनाए रखने और जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम की सहायता करने के लिए किया जा रहा है। खबर तो ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में एक सेक्रटेरिएट के गठन पर सबकी सहमति भी मिल गई है।
बता दें कि इससे पहले 12 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर ने एकमत कायम होने का संकेत देते हुए कहा था कि मेमोरैंडम ऑफ प्रसीजर इस महीने के अंत तक तय कर लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को बदलने का निर्देश देने से जुड़ी एक याचिका अदालत में पेश हुई थी। इसी पर संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश खेहर ने ये टिप्पणी की थी।
आइए जानते हैं कॉलेजियम क्या है-
1) देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
2) 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्यवस्था बनाई गई थी। कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी सीनियर जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
3) सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति से लेकर तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
4) हाईकोर्ट के कौन से जज सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।