देश की राजधानी दिल्ली में शक्तियों को लेकर केजरीवाल सरकार और एलजी अनिल बैजल के बीच जो भी टकराव था वो सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर राजनीतिक मैदान में संविधान को जीत दिलाया। पांच जजों की बेंच ने एक के बाद एक निर्देश दिए और दोनों ही लोगों को ( केजरीवाल सरकार और एलजी) अपने-अपने अधिकारों से अवगत कराया। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने मुख्य फैसले में कहा कि चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में अहम है, इसलिए मंत्री-परिषद के पास फैसले लेने का अधिकार है। संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि हर मामले में LG की सहमति जरूरी नहीं, लेकिन कैबिनेट को फैसलों की जानकारी देनी होगी।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के कामों की लक्ष्मणरेखा भी खींच दी है। तीन जजों की ओर से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआइ) दीपक मिश्रा ने फ़ैसले में कहा कि एलजी के पास सीमित अधिकार हैं। दिल्ली का एलजी अन्य राज्यों के राज्यपालों की तरह ही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी और दिल्ली सरकार को समन्वय के साथ काम करना चाहिए। काउंसिल ऑफ मिनिस्टर का हर फैसला एलजी को सूचित किया जाएगा, लेकिन उस पर एलजी की सहमति अनिवार्य नहीं होगी। एलजी काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की सलाह पर काम करेंगे। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर स्थिति साफ कर दी है कि यह संभव नहीं है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, हमने सभी पहलुओं – संविधान, 239एए की व्याख्या, मंत्रिपरिषद की शक्तियां आदि – पर गौर किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि दिल्ली की असली बॉस चुनी हुई सरकार ही है यानी दिल्ली सरकार। संविधान पीठ के अन्य जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्र तब फेल हो जाता है, जब देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारे समाज में अलग विचारों के साथ चलना जरूरी है। मतभेदों के बीच भी राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुल कर काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि एलजी का काम राष्ट्रहित का ध्यान रखना है, उन्हें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार के पास लोगों की सहमति है। बता दें कि दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आज बेहद अहम फैसला सुनाया।