इस बार के चुनाव में लोगों को जागरुक करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने ‘खुलकर’ मैदान में उतरने का मन बनाया है। लोकसभा चुनाव के लिए RSS के स्वंयसेवक भी मैदान में प्रचार के लिए उतरेंगे। स्वयंसेवकों लोगों को 100 फीसदी मतदान के लिए जागरूक करेंगे और नोटा के खिलाफ नहीं करने के बारे में बताएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) हमेशा दावा करता रहा है कि वो राजनीतिक दल नहीं है। 2014 के चुनाव में भी आरएसएस ने किंगमेकर की भूमिका ही निभाई थी। लेकिन इस बार के चुनाव में स्थिति थोड़ी सी अलग होगी।
दरअसल, जिस बात को बीजेपी अभी समझी है उसे RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत पहले ही समझ चुके थे। 3 राज्यों के चुनाव से पहले ही वो नोटा का विरोध कर रहे थे। अब लोकसभा चुनाव में मोहन भागवत और उनके स्वयंसेवक NOTA के लिए NO कहना सिखाएंगे। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशी के मौके पर दिए भाषण दो अहम मुद्दे उठाए थे। पहला उन्होंने राम मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग की और दूसरा उन्होंने लोगों से चुनाव में नोटा ना चुनने की बात भी कही थी। संघ अब इसी मुद्दे को लेकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक तीन राज्यों के चुनाव के बाद संघ को फीडबैक मिला है कि नोटा के इस्तेमाल की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ। कई स्वयंसेवक इस बात को मानते हैं कि मध्यप्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस ने नहीं बल्कि नोटा ने हराया। इसी स्थित को देखते हुए आरएसएस प्रमुख ने शत प्रतिशत मतदान के साथ नोटा के विरोध प्रचार का भी फैसला लिया है।
नोटा के विरोध के पीछे एक और लॉजिक दिया जा रहा है कि ये उस गुस्से है जो आज के सांसदों के खिलाफ है। लेकिन इतना ज्यादा भी नहीं कि विरोधी को वोट दे दिया जाए। पिछले चुनाव परिणाम को देखें तो नोटा से सबसे ज्यादा नुकसान होने के आसार बीजेपी के ही हैं। इसीलिए संघ अब नोटा के खिलाफ खुला आवाहन करेगा, इसके साथ ही लोगों को बताएगा कि कैसे नोटा की वजह से अनुचित व्यक्ति का चुनाव हो जाता है। संघ प्रचारक और स्वयंसेवक ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलकर ये बात समझाने की कोशिश करेंगे।
तीन राज्यों में नोटा और उसका असर
राजस्थान में 15 ऐसी सीटें रहीं, जिनमें जीत-हार का अंतर नोटा को मिले वोट से कम था। मध्यप्रदेश में ऐसी 11 सीटें रहीं, जहां नोटा ने जीत-हार के अंतर से अधिक वोट हासिल किए। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 2.1% करीब वोट नोटा को मिले। यहां 20 सीटों पर काफी कम अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ।