Election Before Independence: भारत में चुनाव, देश में लागू लोकतांत्रिक व्यवस्था का अभिन्न अंग हैं। स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक चुनाव होते हैं और देश के नागरिक इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक देश में 17 आम चुनाव हो चुके हैं। यानी कि हमारी चुनावी व्यवस्था भी समय के साथ परिपक्व हो रही है। पिछले लोकसभा चुनाव की ही बात की जाए तो 2019 के आम चुनाव में लगभग 67 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं ने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया। आज देश में प्रत्येक वयस्क नागरिक को वोटे देने का अधिकार है लेकिन क्या आपको पता है कि गुलाम भारत में ऐसा नहीं था।

Election Before Independence: ब्रिटिश भारत में वोटर होने के लिए ये होती थी योग्यता
आपको जानकर हैरानी होगी कि आजादी से पहले वोट देने का अधिकार हर किसी व्यक्ति के पास नहीं था। मसलन आजादी से पहले 1937 और 1946 के चुनाव में वोट देने का अधिकार सिर्फ ऐसे व्यक्ति को था जो कि सालाना भू-राजस्व के तौर पर 5 रुपये देता हो या कृषि भूमि के किराये के तौर पर सालाना 10 रुपये देता हो।
साथ ही वे ही लोग वोट दे सकते थे जो आयकर देते थे या कम से कम सालाना 150 रुपये टैक्स देते थे। इसके अलावा शिक्षा का भी मानदंड होता था। जिसके तहत प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर चुका शख्स ही वोट दे सकता था। वे लोग भी चुनाव में मतदान कर सकते थे जो कि सेना से रिटायर हों या ऐसे जवान जो कि कमीशन प्राप्त न हों।
हालांकि महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार था, लेकिन सिर्फ ऐसी महिलाओं को जिनके पति के पास अच्छी खासी संपत्ति होती थी। सेना के जवानों की पेंशनयाफ्ता पत्नी या मां को भी वोट देने का अधिकार होता था।
हालांकि अब सूरत बिल्कुल बदल चुकी है। 1950 में संविधान सभा द्वारा संविधान को अंगीकृत किया गया। जिसके बाद से हिंदुस्तान में वैश्विक वयस्क मताधिकार व्यवस्था लागू है।
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