अर्श से फर्श पर गिरना शायद इसी को कहते हैं। एक समय था जब शरद यादव और अली अनवर के पास सत्ता थी, पॉवर था, पार्टी में भी एक उच्च स्थान था, एक पहचान थी लेकिन आज दोनों ही नेताओं के पास न पार्टी है और न सत्ता। यहां तक की अब दोनों की राज्यसभा सदस्यता भी रद्द कर दी गई है। जी हां, राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने जेडीयू के बागी नेता शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता को रद्द कर दिया है।  राज्यसभा सचिवालय के अनुसार संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2 (1) (a) के अनुसार दोनों नेताओं की सदस्यता रद्द की गई। हालांकि दोनों ही नेताओं ने अपने स्वर मजबूत करते हुए कहा है कि लोकतंत्र के लिए लड़ाई जारी रहेगी और हो सकेगा तो ये लड़ाई कोर्ट में भी लड़ी जाएगी।

इस फैसले पर अली अनवर ने कहा कि इस फैसले से हम लोग डरने वाले नहीं है। संसदीय इतिहास में ये पहला फैसला है जहां राज्यसभा के सभापति ने खुद किया हो। जबकि इससे पहले जो फैसले हुए हैं वो प्रोविजिनल कमेटी, एथिक्स कमेटी के जरिए हुए हैं। अली अनवर ने कहा कि जो लड़ाई हम लड़ रहे हैं, उसके सामने राज्यसभा बहुत छोटी चीज  है, उनकी लड़ाई पद की नहीं, सिद्धांत और संविधान को बचाने की है। वहीं शरद यादव ने ट्वीट करते हुए कहा कि मुझे राज्यसभा से अयोग्य घोषित किया गया क्योंकि बिहार में एनडीए को हराने के लिए बनाए गए महागठबंधन को 18 महीने बाद सत्ता में बने रहने के लिए तोड़ दिया गया। अगर इस गैर-लोकतांत्रिक कार्यशैली के खिलाफ बोलना मेरी गलती है तो मैं लोकतंत्र को बचाने के लिए अपनी लड़ाई जारी ऱखूंगा।

बता दें कि कुछ दिनों पहले जेडीयू का प्रतिनिधिमंडल राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू से मिलने गया था। वहां दोनों ही नेताओं के खिलाफ ज्ञापन सौंपा गया कि दोनों नेता पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं और इसी वजह से उन दोनों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। जेडीयू के इस मांग पर सुनवाई करने के बाद सोमवार को वेंकैया नायडू ने अपना फैसला सुनाया और दोनों नेताओं की राज्यसभा सदस्यता रद्द कर दी। अब देखना ये है कि क्या दोनों नेता इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएंगे या अपनी राजनीति का एक नया दौर प्रारंभ करेंगे।

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