भारत में ऑनलाइन गेमिंग के लिए अब एक स्पष्ट, केंद्रीकृत कानूनी ढांचा अस्तित्व में आ गया है। संसद से पारित “द प्रमोशन एंड रेग्युलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल, 2025” को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल चुकी है। इसके साथ ही सरकार अधिसूचना द्वारा प्रभावी तिथि घोषित करेगी; नियम भी अलग से बनाए जाएंगे, जिनमें से कुछ प्रावधान बिना नियमों के भी लागू हो सकते हैं।
कानून का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
कानून का मूल लक्ष्य दोहरा है—(1) ई-स्पोर्ट्स और ऑनलाइन सोशल गेम्स को बढ़ावा देना, और (2) ऑनलाइन मनी गेमिंग (यानी दांव/स्टेक पर आधारित गेम) को समूची तरह प्रतिबंधित करना। सरकार का तर्क है कि पैसों पर आधारित गेम लत, आर्थिक क्षति, धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और यहां तक कि आतंकी फंडिंग जैसे जोखिम बढ़ाते हैं; इसलिए कड़ी निगरानी और निषेध जरूरी है।
कानून किन चीज़ों को प्रतिबंधित करता है
- ऑनलाइन मनी गेमिंग सेवाएं: कोई भी व्यक्ति/संस्था ऑनलाइन मनी गेम या ऐसी सेवाएं “ऑफ़र” नहीं कर सकती, न ही इसमें सहायता, उकसावा या भागीदारी के जरिए ऑफ़रिंग को बढ़ावा दे सकती है।
- विज्ञापन: ऐसे गेम/सेवाओं का सीधा या परोक्ष विज्ञापन निषिद्ध है।
- भुगतान-सुविधा: बैंक/फिनटेक/पेमेंट इंटरमीडियरीज़ द्वारा ऐसे गेमों के भुगतान/फंड-ऑथराइज़ेशन की सुविधा देना मना है।
- ब्लॉकिंग पावर: केंद्र सरकार को ऐसे कंटेंट/सूचनाओं को सार्वजनिक पहुँच से ब्लॉक कराने का अधिकार मिलेगा। कानून में “ऑनलाइन मनी गेम” की परिभाषा स्टेक/दांव (मनी, क्रेडिट, टोकन आदि) के बदले मौद्रिक या अन्य लाभ की अपेक्षा रखने वाले गेम के रूप में दी गई है—स्किल बनाम चांस का भेद यहां अप्रासंगिक है।
क्या वैध है—ई-स्पोर्ट्स और सोशल गेम्स
ई-स्पोर्ट्स: मल्टी-स्पोर्ट्स इवेंट का हिस्सा, पूर्व-निर्धारित नियमों से शासित, मल्टीप्लेयर प्रतिस्पर्धी खेल—जहां परिणाम शारीरिक/मानसिक कौशल (डेक्सटेरिटी, स्ट्रैटेजिक थिंकिंग आदि) से तय होता है; रजिस्ट्रेशन फीस/प्राइज़ मनी संभव है, पर बेटिंग/स्टेक्स नहीं।
ऑनलाइन सोशल गेम्स: शुद्ध मनोरंजन/कौशल-विकास के लिए; इनमें सब्सक्रिप्शन/वन-टाइम एक्सेस फीस हो सकती है, पर स्टेक्स या स्टेक्स से जुड़ा मौद्रिक लाभ नहीं।
केंद्र सरकार इन दोनों श्रेणियों के लिए पंजीयन/इवेंट-गाइडलाइंस/अकादमी/प्लेटफ़ॉर्म-इंसेंटिव जैसी व्यवस्थाएँ विकसित करेगी।
क्रियान्वयन की संरचना: ऑनलाइन गेमिंग अथॉरिटी
केंद्र सरकार एक अथॉरिटी/एजेंसी गठित कर सकती है (या किसी मौजूदा अथॉरिटी को नामित कर सकती है), जिसके प्रमुख अधिकार होंगे—
किसी ऑनलाइन गेम के “ऑनलाइन मनी गेम” होने/न होने का निर्धारण,
गेम्स की श्रेणीकरण और पंजीयन। यह अथॉरिटी आगे की नियमावली के अनुसार काम करेगी।
जांच-पड़ताल और प्रवर्तन
अधिकृत अधिकारी बिना वारंट किसी स्थान (भवन, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, ई-मेल/सोशल मीडिया जैसे वर्चुअल डिजिटल स्पेसेज़) में प्रवेश, तलाशी और जब्ती कर सकते हैं; संदिग्ध को बिना वारंट गिरफ़्तार भी किया जा सकता है। संबंधित प्रक्रिया भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023के अधीन होगी। इन अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती घोषित किया गया है।
दंड और सज़ाएं
मनी-गेमिंग सेवाएं ऑफ़र/फैसिलिटेट करने पर: अधिकतम 3 साल की जेल और/या ₹1 करोड़ तक का जुर्माना।
विज्ञापन करने पर: अधिकतम 2 साल की जेल और/या ₹50 लाख तक का जुर्माना।
भुगतान-लेनदेन सुविधा देने पर: अधिकतम 3 साल की जेल और/या ₹1 करोड़ तक का जुर्माना।
साथ ही, सरकारी निर्देशों/गाइडलाइंस का उल्लंघन करने पर सिविल पेनल्टी (₹10 लाख तक), पंजीयन निलंबन/रद्दीकरण और एक अवधि तक गेम/सेवा/प्रमोशन पर रोक भी लग सकती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रावधानों का फोकस सेवा-प्रदाता, भुगतान-मध्यस्थ और विज्ञापनदाताओं पर है; खिलाड़ी-उपयोगकर्ताओं पर प्रत्यक्ष दंडात्मक प्रावधान नहीं रखे गए हैं।
उद्योग पर असर
कानून के लागू होते ही रियल-मनी गेमिंग पर निर्भर कंपनियाँ अपने मॉडल बदल रही हैं/विभाग बंद कर रही हैं। उदाहरण के लिए कुछ प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म्स ने मनी-आधारित गेम रोककर फ्री-टू-प्ले जैसे लूडो, स्नेक्स-एंड-लैडर्स आदि जारी रखने की घोषणा की है। उद्योग-संस्थाओं ने आशंका जताई कि अचानक प्रतिबंध से टैक्स-रेवेन्यू में ₹20,000 करोड़/वर्ष की कमी हो सकती है और उपयोगकर्ता ऑफ़शोर/अनियंत्रित प्लेटफ़ॉर्म की ओर मुड़ सकते हैं। सरकार के आकलन के मुताबिक, रियल-मनी गेमिंग से हर वर्ष करोड़ों उपयोगकर्ताओं को सम्मिलित रूप से क़रीब ₹20,000 करोड़ का नुकसान होता है—यही वजह है कि राजस्व-हानि से ऊपर नागरिक-हित को प्राथमिकता दी गई।
लागू करने की चुनौतियाँ
ऑफ़शोर ऑपरेटर्स और VPN: ऑफ़शोर प्लेटफ़ॉर्म/ऐप्स और VPN-आधारित एक्सेस पर अंकुश तकनीकी-कानूनी दृष्टि से कठिन होगा।
भुगतान-निगरानी: भुगतान-गेटवे/UPI/कार्ड-नेटवर्क स्तर पर सतत निगरानी और ब्लॉक-लिस्टिंग जरूरी होगी।
राज्यों से समन्वय: पुलिस-इन्फोर्समेंट और साइबर-सेल्स के साथ तालमेल, एक समान कार्यप्रणाली और शीघ्र प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता।
उद्योग जगत ने भी इन क्रियान्वयन-चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया है।
गेमर्स, माता-पिता और डेवलपर्स के लिए इसका मतलब
गेमर्स/अभिभावक: मनी-गेम्स, उनके विज्ञापन और ऐसे लेनदेन अब गैर-कानूनी दायरे में हैं—सावधानी बरतें; वैध विकल्पों (ई-स्पोर्ट्स/सोशल-गेम्स) की पहचान करें।
डेवलपर्स/पब्लिशर्स: ई-स्पोर्ट्स और सोशल-गेम्स के लिए मान्यता/पंजीयन सिस्टम बनेगा; सब्सक्रिप्शन/वन-टाइम एक्सेस मॉडल अपनाए जा सकते हैं, पर स्टेक्स/विनिंग-आउट-ऑफ-स्टेक्स नहीं। भुगतान और विज्ञापन-अनुपालन अनिवार्य होगा।
इवेंट-ऑर्गनाइज़र्स: टूर्नामेंट-गाइडलाइंस, ट्रेनिंग अकादमी और टेक प्लेटफ़ॉर्म-इंसेंटिव जैसे प्रावधान ई-स्पोर्ट्स इकोसिस्टम को औपचारिक आधार देंगे।
ऑनलाइन गेमिंग कानून 2025 भारत के डिजिटल गेमिंग परिदृश्य को रीसेट करता है—रियल-मनी गेमिंग पर कड़ा अंकुश लगाते हुए ई-स्पोर्ट्स/सोशल-गेमिंग को संस्थागत सहारा देता है। आगे की अधिसूचनाएँ और नियम तय करेंगे कि यह ढांचा मैदान-ए-अमल में कितना सक्षम साबित होता है—खासतौर पर ऑफ़शोर/VPN, भुगतान-निगरानी और प्रवर्तन-समन्वय जैसी चुनौतियों पर। फिलहाल, संदेश साफ़ है: नवाचार और मनोरंजन को बढ़ावा—मनी-गेमिंग को नो-एंट्री।