हमारा समाज जितना आगे बढ़ रहा है। उतना ही आत्मकेंद्रित भी होता जा रहा है। हम अपने आस-पास की गतिविधियों को देखते तो हैं। लेकिन उस पर प्रतिक्रिया देना नहीं चाहते। सरकारी व्यवस्थाओं की हालत तो और भी खराब है। सरकार में गरीबों की सुनवाई नहीं हो रही। योजनाएं तो तमाम बनती है लेकिन उसका क्रिन्यावन सही ढंग से नहीं हो पाता। जिसके चलते ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। जो दिल और दिमाग को झकझोर कर रख देती हैं ।ऐसी घटनाओं से इंसानियमत शर्मसार हो जाती है।
दरअसल, बाराबंकी के त्रिवेदीगंज में ऐसा कुछ देखने को मिला कि एक गरीब व्यक्ति की मौत हो गई। मंशाराम नामक इस व्यक्ति का त्रिवेदीगंज के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज चल रहा था। हालांकि, बाराबंकी के सीएमओ डॉ. रमेश चंद्र का तो कहना है कि मंशाराम की मौत तो भर्ती कराने से पहले ही हो गया था। मंशाराम को जब अस्पताल लाना था। तब उसे एंबुलेंस की सेवा नहीं मिली। जबकि सरकार हर समय हर किसी को एंबुलेंस उपलब्ध कराने का दावा करती है। मंशाराम को उसका दिव्यांग बेटा ठेले पर लेकर अस्पताल पहुंचा था। वो ठेला खींच रहा था। और उसकी छोटी बहन ठेले को धक्का दे रही थी।
वहीं अस्पताल में पिता की मौत के बाद जब शव को वापस गांव ले जाने की बारी आई तो अस्पताल प्रशासन का क्रूर चेहरा सामने आया। शव ले जाने के लिए अस्पताल के पास कोई व्यवस्था नहीं थी। सीएमओ कहते हैं कि जिला अस्पताल को छोड़कर और कहीं भी सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर शव वाहनों की व्यवस्था ही नहीं है। लिहाजा मंशाराम के शव को उनके बच्चे ठेले पर लादकर ही वापस अपने गांव ले गए।सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से उनके गांव की दूरी तकरीबन आठ किलोमीटर पड़ती है।
इस दौरान तमाम गांव आए होंगे।तमाम लोगों ने भी दिव्यांग बेटे को बाप के शव को ठेले पर ले जाते देखा होगा।लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की।किसी तरह बच्चे शव को लेकर घर पहुंचे तो उनके सामने अंतिम संस्कार कराने की समस्या मुंह बाए खड़ी थी। गरीबी और मुफलिसी का हाल ऐसा कि परिवार के पास अंतिम संस्कार तक लिए पैसे नहीं थे।
ये हाल तब है जबकि सरकार की तरफ से गरीबों के लिए तमाम योजनाएं चलाने के दावे किए जा रहे हैं।गरीबों के कल्याण के लिए तरह तरह के कोश बनाए गए हैं।.आर्थिक मदद की भी व्यवस्था है।ग्राम पंचायत से लेकर जिला स्तर पर गरीबों की मदद की व्यवस्था किए जाने के बड़े बड़े दावे भी किए जा रहे हैं। लेकिन यहां न तो स्वास्थ्य विभाग से।न जिला प्रशासन से और न ही ग्राम पंचायत से ही किसी तरह की मदद मंशाराम के परिवार को मिली।
ऐसा नहीं है कि इस हालात से जिम्मेदार लोग वाकिफ नहीं होंगे।मुश्किल तो ये है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की मंशा ही गरीबों के प्रति नकारात्मक रहती है। इसलिए मंशाराम जैसे लोगों और उनके परिजनों की मदद के लिए जरूरी है कि अधिकारियों की मंशा बदले और जनप्रतिनिधि भी संवेदनशील हों।
एपीएन ब्यूरो