लॉकडाउन
उसने शहर का शहर बसाया
जब वक्त ने उससे आशियाना छीन लिया तो
उसको किसी ने नहीं अपनाया
ये सभी तस्वीरे उस वक्त की हैं जब भारत में 24 मार्च को 21 दिन के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया था। सभी लोग कोरोना के डर से अपने घरों में बैठे थे। ये मजदूर सड़कों पर नंगे पैर अपनों से मिलने के लिए घर की तरफ निकल गए थे। आज लॉकडाउन को एक साल हो गया है। इन तस्वीरों को देखने के बाद बंदी की भयानक याद ताजा हो जाती है।

वक्त के पहिए का पीछा करता हुआ बेरोजगार मजदूर, घर की याद में और कोरोना से बचने के लिए दौड़ता हुआ मजदूर। बिना किसी सरकारी सुविधा के घर की तरफ जाते हुए मजदूर।

कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ लिए, हाथ में फर्ज को थामें, वहां के लिए निकल गए हैं, जहां से कभी बड़ी शान से कहकर निकले थे, “जा रहे हैं कमाने”

लॉकडाउन में राजधानी की सड़कों पर बचपन खो सा गया है। गौर से देखिए मेरी इन तस्वीरों को हाथ में खिलौना लेनी की उम्र में, गृहस्थी लेकर निकल पड़े हैं।

खौफ ना चिलचिलाती धूप का है, ना बदलते वक्त के रूप का है, ये खौफ तो अपनों से बिछड़ने का है।

मेरे शहर का बटवारा हुआ, किसी ने घर चुना किसी ने गृहस्थी चुनी मैंने अपनी खुशियों की कश्ती चुनी।
कोई आशियाना नहीं है। लेकिन आशियाने की तलाश में निकल पड़े हैं। इन चौड़ी सड़कों को इनकी औकात बताने के लिए हम पैदल ही चल पड़े हैं।