जबसे यह खबर आई कि भारत और नेपाल में जारी तल्खी के बीच दोनों देशों के बीच करीब 9 महीने बाद पहली बैठक होने जा रही है तबसे दोनों देश इसका इंतजार ही कर रहे थे। नेपाल की ओर से पिछले कुछ महीनों से भारत के लिए ऐसे भड़काउ बयान और खबरे प्रसारित की जा रही थी कि लगा दोनों देशों के बीच सदियों पुराने संबंधों में कड़वाहट घुल जाएगी। हालांकि राजनीतिक धुरंधर इसके कयास तो लगा रहे थे कि इस खेल के पीछे कौन है, पर नेपाल हर नए दिन एक नया शिगूफा छोड़ देता था। बहरहाल जब यह खबर आई कि दोनों देश के उच्चाधिकारियों की वार्ता होने जा रही है तो एक उम्मीद जगी। इसकी पृष्ठभूमि तैयार की खुद नेपाली पीएम ओली ने। 15 अगस्त को जब हमारा देश आजादी की 74 वीं वर्षगांठ को आन बान और शान से मना रहा था तब ओली ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर बधाईयां और शुभकामनाएं तो दी हीं, वार्ता के लिए भी पेशकश की। ऐसे में भारत अपने संस्कारों से कहां चूकता , तुरंत उसने परस्पर वार्ता की प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी।
दोनों देशों के बीच 9 महीनों के बाद होने वाली यह वार्ता पहली वार्ता है जिसमें कई मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों देशों ने भारत-नेपाल ज्वाइंट ओवरसाइट मैकनिजम के तहत समीक्षा बैठक में हिस्सा लिया। बैठक में भारत की फंडिंग से नेपाल में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति पर चर्चा हुई। हालांकि, इस बैठक में नेपाल के नए नक्शे या सीमा विवाद पर कोई बातचीत नहीं हुई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में भारत की तरफ से नेपाल में राजदूत विनय मोन क्वात्रा ने हिस्सा लिया। जबकि नेपाल के विदेश सचिव शंकर दास बैरागी ने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया। क्वात्रा और बैरागी भारत-नेपाल ज्वाइंट ओवरसाइट मैकनिजम के संयुक्त अध्यक्ष हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आठ मई को उत्तराखंड के धारचुला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ने वाली सामरिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उदघाटन किया था। जिसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव पैदा हो गया था। नेपाल ने इसका विरोध करते हुए दावा किया कि ये सड़क उसके क्षेत्र से होकर गुजरती है। इसके कुछ समय बाद नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को उसके क्षेत्र में दिखाया गया। भारत ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए कहा। कि नेपाल का इन इलाकों पर दावा बिल्कुल आधारहीन है। माना गया कि, भारत-चीन में जारी तनाव के बीच। ड्रैगन के दबाव में आकर नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली ने ये कदम उठाया।
भारत के साथ रिश्ते खराब करने में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की खास भूमिका रही। जिन्होंने भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या तक को नकली बता दिया। बाद में गौतम बुद्ध के मुद्दे पर भी विवाद हुआ जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उन्हें भारत के सबसे बड़े चर्चित आदर्शों में एक बताया। इस पर नेपाल ने कहा कि गौतम बुद्ध भारत के नहीं नेपाल के थे। ओली के ऐसे ही तमाम भड़काऊ बयानों से दोनों देशों के रिश्ते निचले स्तर पर पहुंच गए। बहरहाल नेपाली पीएम ओली जी को शायद यह अहसास हो गया है चीन से दोस्ती मतलबी दोस्त की है जो मतलब निकलते ही टाटा बाय बाय देगा, जबकि भारत की दोस्ती उसके सबसे पड़े पर्वत हिमालय़ की भांति है, जो अटल रहेगी।