चैत्र नवरात्रि आज से प्रारंभ हो गए हैं। इस बार नवरात्र 8 दिन के हैं क्योंकि अष्टमी और नवमी एक ही दिन पड़ रही है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
चैत्र नवरात्र का महत्व इसलिए होता है क्योंकि इस महीने से शुभता और ऊर्जा का आरम्भ होता है। ऐसे समय में मां दुर्गा की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा- अर्चना की जाती है और उनको प्रसन्न किया जाता है। आइए जानते हैं कि मां शैलपुत्री की पूजा कैसे की जाती है।
ऐसा है मां शैलपुत्री का स्वरुप
आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है।
शैलपुत्री की पूजा का विधि-विधान:
मां शैलपुत्री का दर्शन कलश स्थापना के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है। नवरात्र व्रत में नौ दिन व्रत रहकर माता का पूजन बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है। लेकिन जो लोग नौ दिन व्रत नहीं रह पाते वे सिर्फ माता शैलपुत्री का पूजन कर नवरात्रि का फल पा सकते है।
शैलपुत्री पूजन विधि:
दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। कलश स्थापना से इनकी पूजा शुरू की जाती है। इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और कलश में उन्हें विराजने के लिए प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है।
वहीं नवरात्र के साथ ही आज से हिंदी का नया साल शुरू हो रहा है। हिंदुओं का नया साल चैत्र वासन्तिक नवरात्र से शुरू होता है। चैत्र महीने में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष का आरंभ हुआ है।
बता दें कि भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं लेकिन हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है। यह दिवस हिन्दु समाज के लिए अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि इस तिथि से ही नया पंचांग प्रारंभ होता है और वर्ष भर के पर्व, उत्सव एवं अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं।