इस बार का नोबल पुरस्कार अमेरिकी अर्शशास्त्री रिचर्ड थेलर के नाम रहा। थेलर ने अपने काम के जरिए यह दिखाया कि आर्थिक व वित्तीय फैसले करने वाले हमेशा तार्किक नहीं होते बल्कि ज्यादातर वे बहुत हद तक मानवीय हदों में बंधे होते हैं। थेलर का शोध व्यावहारिक अर्थशास्त्र पर केंद्रित है जो यह पड़ताल करता है कि वित्तीय व आर्थिक बाजारों में किसी व्यक्ति, व्यक्तियों या समूहों द्वारा किए गए फैसलों पर मनोवैज्ञानिक व सामाजिक कारकों का क्या असर रहता है। कुछ इसी तरह के आर्थिक सोच को मोदी सरकार ने पहले से ही लागू किया है। थेलर ने ‘नज इकनॉमिक्स’ के आइडिया का प्रस्ताव दुनिया के सामने रखा जिसमें बिना दबाव के लोगों को लाभकारी व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करने पर जोर दिया गया है। मोदी सरकार ने इसे पिछले साल ही अपना लिया था।

मोदी सरकार की नीति आयोगने नज यूनिट को अपनाने के लिए बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ समझौता किया। इसका मक़सद था, लोगों के आर्थिक व्यवहार में बदलाव के तौर तरीके खोजना। जाहिर है कि मोदी सरकार का लक्ष्य था कि वो सरकारी कार्यक्रमों को ज्यादा प्रभावी बना सकें। इस यूनिट की स्थापना का उद्देश्य था कि सोशल मीडिया और विज्ञापन कैंपन्स के जरिए मोदी सरकार की योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत, जन धन योजना, डिजिटल ट्रांजेक्शन, स्किल इंडिया के प्रति लोगों को जमीनी स्तर पर संवेदनशील बनाना है।

बता दें कि शिकागो बूथ बिज़नेस स्कूल के प्रोफ़ेसर थेलर की लिखी किताब ‘नज’ बताती है कि लोग किस तरह से ख़राब और बेतुके फ़ैसले करते हैं। प्रोफ़ेसर थेलर ने ये किताब कैस आर स्नस्टीन के साथ मिलकर लिखी है। किताब आदमी की सोच और खर्च करने के उसके तौर तरीके के बीच के रिश्ते की पड़ताल करती है। नीति आयोग को यह आइडिया तब सूझा जब कुछ मंत्रालयों ने सरकार के प्राथमिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने से संबंधित समस्याएं लेकर उसका दरवाजा खटखटाया। तब इस यूनिट की स्थापना विज्ञापन, कार्यक्रमों के लिए रकम जारी करने और कार्यक्रमों की सफलता से संबंधित अन्य सामान्य तत्वों में बदलाव की सिफारिश के लिए की गई।

रिचर्ड थेलर अपने काम के सिलसिले में ब्रिटेन पहुंचे और वहां साल 2010 में पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के मातहत एक ‘नज यूनिट’ की शुरुआत हुई। इस ‘नज यूनिट’ के दफ्तर ब्रिटेन, न्यूयॉर्क, सिंगापुर और सिडनी में हैं। बता दें कि नोबेल प्राइज़ का फैसला लेने वाली कमिटी के एक जज पेर स्ट्रोएमबर्ग ने कहा, “प्रोफ़ेसर थेलर का काम हमें बताता है कि इंसान की सोच उसके आर्थिक फैसलों को किस तरह से प्रभावित करती है.” फैसला करने वाले जजों के पैनल ने कहा कि प्रोफ़ेसर थेलर की रिसर्च लोगों को बाज़ार के तौर-तरीकों को समझने और ख़राब फ़ैसलों से बचने में मदद करती है। बता दें कि रिचर्ड भारत में हुए नोटबंदी के भी समर्थक थे।