मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) की आज 133 जयंती (133 Birth Anniversary) है। इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) के रूप में भी मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री (Education Minister) थे। इन्हें अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का (Saudi Arabia Mecca) में हुआ था। 22 फरवरी 1958 में दिल्ली में उनका निधन हो गया था।
मौलाना एक पत्रकार, लेखक, कवि, मुस्लिम विद्वान और भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। मौलाना भारते के विभाज के खिलाफ थे। वे उन मुस्लिम नेताओं में शामिल थे जिन्होंने भारत-पाक विभाज का भारी विरोध किया था। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया।
भारत- पाकिस्तान विभाजन का उन्होंने भारी विरोध किया था। इसके लिए उन्होंने खिलाफत आंदोलन भी चलाया था। साल 1923 में मौलाना अबुल कलाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसिडेंट बने। मौलाना 1940 से लेकर 1945 तक कांग्रेस के प्रेसिडेंट थे। आजादी के बाद वे उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।
मौलाना शिक्षा और आजादी को लेकर अक्सर जनता को प्रोत्साहित किया करते थे। उनके कई अनमोल विचार हैं, जिन्हें लोग आज भी याद रखते हैं।
Maulana Abul Kalam Azad Quotes in English
- हमें जीवन में कभी हताश नहीं होना चाहिए, निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। (We should never get discouraged in life, we should keep moving forward. )
- दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति लाती है। (دل سے دی گئی تعلیم معاشرے میں انقلاب لاتی ہے۔)
- राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं होगा, अगर यह समाज की आधी आबादी की शिक्षा और उन्नति पर पूरा ध्यान न दे – जो कि महिलाएँ हैं। (தேசியக் கல்வியின் எந்தத் திட்டமும் சமூகத்தின் பாதிப் பெண்களின் கல்வி மற்றும் முன்னேற்றத்தில் முழுக் கவனம் செலுத்தவில்லை என்றால் அது வெற்றியடையாது)
- गुलामी बहुत बुरी होती है भले ही इसका नाम कितना भी ख़ूबसूरत क्यों न हो। (ਗ਼ੁਲਾਮੀ ਬਹੁਤ ਮਾੜੀ ਹੈ ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਕਿੰਨਾ ਵੀ ਸੋਹਣਾ ਕਿਉਂ ਨਾ ਹੋਵੇ।)
- हमें एक पल के लिए भी यह नहीं भूलना चाहिए कि हर व्यक्ति को यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि उसे बुनियादी शिक्षा मिले, क्योकि इसके बिना वह पूर्ण रूप से एक नागरिक के अधिकारो का निर्वहन नहीं कर पाता हैं। (ಮೂಲಭೂತ ಶಿಕ್ಷಣವನ್ನು ಪಡೆಯುವುದು ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ವ್ಯಕ್ತಿಯ ಜನ್ಮಸಿದ್ಧ ಹಕ್ಕು ಎಂಬುದನ್ನು ನಾವು ಒಂದು ಕ್ಷಣವೂ ಮರೆಯಬಾರದು, ಏಕೆಂದರೆ ಇದು ಇಲ್ಲದೆ ನಾಗರಿಕನ ಹಕ್ಕುಗಳನ್ನು ಸಂಪೂರ್ಣವಾಗಿ ಬಿಡುಗಡೆ ಮಾಡಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ.)
मौलाना अबुल कलाम की यह कविताएं काफी जानी मानी हैं।
इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है
और इन की अदाओं में मज़ा और ही कुछ है
ये दिल है मगर दिल में बसा और ही कुछ है
दिल आईना है जल्वा-नुमा और ही कुछ है
इंतिज़ार उस गुल का इस दर्जा क्या गुलज़ार में
नूर आख़िर दीदा-ए-नर्गिस का ज़ाइल हो गया
उस ने तलवारें लगाईं ऐसे कुछ अंदाज़ से
दिल का हर अरमाँ फ़िदा-ए-दस्त-ए-क़ातिल हो गया
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