देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 जुलाई को अपने संसदीय क्षेत्र यानी वाराणसी का दौरा किया था। पीएम मोदी के आने से पहले ही काशी के लोगों को नया तोहफा मिला चुका था। मंडुवाडीह स्टेशन को बनारस नाम दे दिया गया। स्टेशन पर मंडुवाडीह की जगह अब बनारस नाम के बोर्ड लग चुका है। नए बोर्ड पर हिंदी, संस्‍कृत, अंग्रेजी और उर्दू में बनारस लिखा हुआ है। टिकटों पर भी बनारस नाम लिखा जा रहा है।

योगी सरकार पुराने चीजों के नाम को बदल कर नया नाम देने में माहिर है। चाहे वो विधर्मियों द्वारा हिंदू संस्कृति से जुड़े शहरों, जिलों के बदले गए नामों को निरस्त कर दुसरा नाम, सांस्कृतिक पहचान से जुड़े नाम रखने की परंपरा हो या फिर दीपदान या प्रज्ज्वलन जैसी समाप्त हो चुकी परंपराओं को पुनर्जीवित करने की बात हो। योगी सरकार यह काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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यह शहर केवल वाराणसी या काशी के लिए ही नही बाबा विश्वनाथ की नगरी का एक नाम बनारस के भी नाम से जाना जाता है। । बड़ा प्रचलित नाम है और बोलचाल में आज भी यही प्रचलित भी है। बनारस भी काशी का ही पर्याय है। संस्कृत वांग्मय और केनोपनिषद में रस और बन की उपलब्ध व्याख्या ही बनारस की उत्पत्ति का मूल है।

मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस करने की मांग काफी समय से किया जा रहा था। पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस रखने का इजाजत दे दिया था। इसके नाम को लेकर सरकार में कई स्तरों पर जरूरी कार्रवाई पूरी की जा रही थी। रेलवे बोर्ड से स्वीकृति मिलते ही मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस करने की कवायद तेज कर दी गई थी। इस स्टेशन का कोड नाम बीएसबीएस है।

मगर वाराणसी में पहले से शहर के नाम ‘बनारस’ से कोई स्टेशन नहीं था। जबकि काशी और वाराणसी सिटी के नाम से तीन स्टेशन मौजूद हैं। जिसके बाद अब बनारस नाम के स्टेशन की मांग पूरी कर दी गई। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन कर दिया गया। जिसके बाद अब वाराणसी में मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस रेलवे स्टेशन करने का फैसला ले लिया गया।

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