अयोध्या मामले में राम मंदिर के बनने और न बनने की स्थिति अभी भी साफ नहीं हो पाई है। एक तरफ मामला देश के सर्वोच्च अदालत में फंसा है तो वहीं दूसरी तरफ हिन्दू संगठनों ने मोदी सरकार पर संसद में कानून लाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि मोदी सरकार द्वारा कानून लाने से राम मंदिर बनने की राह आसान हो जाएगी। विश्व हिन्दू परिषद की नेता साध्वी प्राची ने राम मंदिर को लेकर विवादित बयान देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का चाहें जो फैसला हो, अयोध्या में तो राम मंदिर का ही निर्माण होगा। वहीं इससे पहले विजयदशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए कानून लाना चाहिए। लेकिन बात ये हा कि क्या कानून लाने से राम मंदिर आसानी से बन सकेगा?

राम मंदिर का मामला कई सालों से अदालतों के चक्कर काट रहा है। पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में ये मामला पेंडिंग था, अब सुप्रीम कोर्ट में ये मामला पेंडिंग है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि  क्या सुप्रीम कोर्ट में मामला पेंडिंग रहते हुए सरकार इस बारे में कानून ला सकती है? बताया जा रहा है कि अयोध्या मामले पर कानून लाया जा सकता है लेकिन उसे फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। दरअसल, 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था। सरकार के इस ऐक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट (अर्जी) को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था और निर्देश दिया था कि जिसके फेवर में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में पहले से व्यवस्था दी हुई है कि अदालत के किसी फैसले को खारिज करने के लिए सरकार या विधायिका कदम नहीं उठा सकती। वह सुपर कोर्ट की तरह काम नहीं कर सकती, बल्कि वह कानूनी प्रावधान में संशोधन कर सकती है।

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