फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने गीतकार जावेद अख्तर (Javed Akhtar) अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद लगातार तालिबान का साथ देने वाले नेताओं और देशों पर हमलावर हैं। भारत में तालिबान का साथ देने वाले नेताओं को भी अख्तर खरी खोटी सुना चुके हैं वहीं अमेरिका (America) पर भी अपना गुस्सा जाहिर कर चुके हैं। जावेद अख्तर ने एक बार फिर तालिबान का साथ देने के लिए तैयार कथित सभ्य और लोकतांत्रिक देशों (Democratic Countries) को आड़े हाथ लिया है।
जावेद अख्तर ने ट्वीट कर कहा कि, दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों को तालिबान का साथ देने से इंकार कर देना चाहिए। महिलाओं के दमन के लिए चारों चरफ तालिबान की निंदा करनी चाहिए। जावेद ने एक के बाद एक ट्वीट कर फिर विवाद खड़ा कर दिया है।
जावेद अख्तर अपने पहले ट्वीट में लिखते हैं, “हर सभ्य व्यक्ति, हर लोकतांत्रिक सरकार, दुनिया के हर सभ्य समाज को तालिबानियों को मान्यता देने से इनकार करना चाहिए और अफगान महिलाओं के क्रूर दमन के लिए निंदा करनी चाहिए या फिर न्याय, मानवता और विवेक जैसे शब्दों को भूल जाना चाहिए।”
अपने दूसरे ट्वीट में जावेद अख्तर ने तालिबान के प्रवक्ता सैयद जकीरुल्लाह की तरफ से महिलाओं के ऊपर दिए गए तुच्छ बयान की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने ट्वीट किया, “तालिबान के प्रवक्ता ने दुनिया को बताया है कि महिलाएं मंत्री बनने के लिए नहीं बल्कि घर पर रहने और बच्चे पैदा करने के लिए होती हैं लेकिन दुनिया के तथाकथित सभ्य और लोकतांत्रिक देश तालिबान से हाथ मिलाने को तैयार हैं। कितनी शर्म की बात है।”
दरअसल तालिबान के प्रवक्ता सैयद जकीरुल्लाह (Syed Zakir Ullah) से जब मीडिया कर्मियों ने सवाल किया कि, तालिबान के सरकार में क्या महिलाएं मंत्री बनेगी तो जकीरुल्लाह ने बेतुका बयान देते हुए कहा था कि, महिलाओं का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है वह मंत्री नहीं बन सकती हैं।
जकीरुल्लाह ने आगे कहा था कि, महिलाओं को मंत्री पद देने का मतलब उनके गले में ऐसा फंदा डालना है जिसे वे संभाल नहीं सकती हैं। वहीं महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को लेकर हाशमी ने कहा था कि ये कुछ महिलाएं हैं और वे अफगानिस्तान की सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं
तालिबान को लेकर अख्तर ने पहली बार बयान नहीं दिया है बल्कि इससे पहले भी वे अमेरिका को फटकार लगा चुके हैं। जावेद अख्तर ने 17 अगस्त को ट्वीट कर कहा था कि, “अमेरिका किस तरह की सुपरपावर है कि वो क्रूर तालिबान को खदेड़ नहीं पाया। ये कैसी दुनिया है, जो बिना दया के अफगानी महिलाओं को तालिबानियों के पास छोड़ दिया। उन पश्चिमी देशों को शर्म आनी चाहिए जो खुद को मानवीय अधिकारों का रक्षक होने का दावा करते हैं।”
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