भारत (India) ही नहीं दुनिया के लिए भी 2022 एक मुश्किलों से भरा हुआ साल रहा। 2020 से ही कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया को साल के दूसरे ही महीने में एक दूसरा बड़ा संकट रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के रूप में देखने को मिला इसके अलावा मंदी की आहट, जरूरी सामानों की कीमतों में उछाल भी बड़े मुद्दे रहे।
लेकिन आज हम बात कर रहे हैं 2022 में अपनाई गई भारत की विदेश नीति (Foreign Policy) को लेकर, जो खासकर यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के चलते एक कठिन दौर से गुजरी। जैसा की हरेक देश को अपनी नीति तय करने का अधिकार होता है ऐसे ही भारत की विदेश नीति भी भारत के हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
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यूक्रेन में जारी युद्ध और भारत
भारत ने यूक्रेन (Ukraine) में जारी युद्ध को लेकर “गुटनिरपेक्षता” की नीति को फोलो करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूरोपीय संघ (European Union) के साथ तलख होते रूस के संबंधों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की। एक तरफ जहां भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई एक बैठक में कहा कि “यह युग युद्ध का नहीं है” (Today’s era must not be of war)।

वहीं, दूसरी ओर भारत के रूस के साथ लगातार बढ़ रहे सैन्य एवं तेल व्यापार आयात के उपर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार करने से साफ मना कर दिया। इसके साथ ही भारत ने रूस के साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए रुपया-रूबल आधारित भुगतान सिस्टम को लेकर भी रूपरेखा तैयार की गई। भारत पिछले दो महीनों से रूस से सबसे ज्यादा तेल का आयात कर रहा है।
इसके साथ ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) और अन्य कई मंचों पर रूस द्वारा यूक्रेन में युद्ध की निंदा को लेकर आये प्रस्तावों से दूरी बनाये रखी।
22 फरवरी को शुरू हुए रूस यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद से भारत ने अपने हजारों छात्रों को यूक्रेन से निकाला था। जिसके चलते एक भारतीय छात्र की वहां मौत भी हो गई थी।
भारत की Foreign Policy में 2022 में और क्या नया देखने को मिला?
लंबे अंतराल के बाद भारत ने आखिरकार मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTAs) को अपनाना शुरू किया। कई वर्षों से जारी इस तरह के समझौतों के अलावा सभी द्विपक्षीय निवेश संधियों (Bilateral Investment Treaties- BITs) को रद्द करने और 15 देशों की चीन के दबदबे वाले एशियाई क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से हटने के बाद सभी मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा करने के बाद वर्ष 2022 में भारत एक बार फिर से FTA में शामिल हो गया।

इस साल (2022 में) भारत ने खाड़ी के देश संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) के साथ व्यापार समझौतों को पूरा किया तो वहीं यूरोपीय संघ (EU), खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ-साथ यूके और कनाडा से व्यापार समझौतों को लेकर बातचीत जारी है।
भारत ने 24 मई 2022 को जापान की राजधानी टोक्यो में आयोजित किए गए क्वाड़ (QUAD) सम्मेलन में भारत, अमेरिका के नेतृत्व में बने हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा (Indo-Pacific Economic Forum- IPEF) में भी शामिल हो गया, लेकिन भारत ने बाद में व्यापार को लेकर हो रही बातचीत से बाहर रहने का फैसला किया।
कैसे रहे पड़ोसी देशों के साथ संबंध?
भारत ने अपनी आजादी के बाद से सबसे बड़ी समस्या से जूझ रहे श्रीलंका को काफी वित्तीय और मानवता के आधार पर जरूरी सेवाओं की मदद की। वहीं, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ भारत ने क्षेत्रीय व्यापार एवं ऊर्जा को लेकर करार किया। इस करार के चलते दक्षिण एशियाई ऊर्जा ग्रिड का विकास संभव हो सकेगा।
भारत सरकार द्वारा अफगानिस्तान के तालिबान और म्यांमार में शासन कर रही जुंता (सैन्य सत्ता) जैसे शासनों से भी बातचीत के रास्ते खुले रखे। इसके अलावा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारत ने फिर से “तकनीकी मिशन” शुरू किया तो वहीं म्यांमार के साथ सीमा सहयोग पर चर्चा करने के लिये विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने नवंबर 2022 में म्यांमार का दौरा किया।
भारत के पाकिस्तान के साथ रिशते इस साल भी पिछले साल की ही तरह ठंड़े रहे। हालांकि दोनो देशों के विदेश मंत्रियों (भारत के डॉ एस जयशंकर और पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो) के बीच दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र (UN) में काफी आरोप प्रत्यारोप का दौर चला।

चीन के साथ बढ़ा गतिरोध
चीन (China) के विदेश मंत्री की 24-25 मार्च को की गई दिल्ली यात्रा एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कुछ जगहों से उसके पीछे हटने के बावजूद भारत और चीन के बीच तनाव जो 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में भारतीय चौकियों पर कब्जा करने के चीन की सेना के नाकामयाब मंसुबों के शाथ खत्म हुआ। LAC पर 2020 से जारी तनाव के 2023 में भी अनवरत जारी रह सकता है।
हालांकि भारत और चीन के बीच जारी संबंधों में तनातनी के बीच भारत 2023 में दो बार नवंबर में जी-20 और 2023 के मध्य में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी में मेजबानी करने वाला है, इससे गतिरोध समाप्त करने के लिये बातचीत के सहारे रास्ता निकलने की उम्मीद है।
ईरान
ईरान में भी एक कार्यकर्ता मेहसा अमीनी (Mahsa Amini) की हत्या के विरोध में जब हजारों लोग सड़कों पर उतरे, लेकिन इसको लेकर भारत ने किसी भी तरह की आलोचना करने से दूरी ही बनाये रखी। भारत अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों से पहले ईरान से बड़ी मात्रा में तेल का आयात करता था।

कनेक्टिविटी को लेकर रहा खास जोर
कनेक्टिविटी को लेकर भारत ने मध्य एशियाई देशों तक अपनी पहुंच को फिर से मजबूत करना शुरू किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बहुप्रतीक्षित तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन परियोजना को फिर से शुरू करने के लेकर किये जा रहे प्रयास हैं। इसके साथ ही इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के व्यापक इस्तेमाल को लेकर भी लगातार चर्चाओं का दौर जारी रहा।
अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहे ईरान में भारत द्वारा निर्मित किये जा रहे चाबहार बंदरगाह को फिर से शुरू करने को लेकर भी कदम उठाए गए, और चाबहार को चलाने के लिए जरूरी उरकरण मुहैया कराये गए। ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत के लिए काफी मायने रखता है क्योंकि यह मध्य एशियाई देशों के लिये समुद्र तक एक सुरक्षित और सीधी पहुंच प्रदान कर सकता है।