आयकर विभाग को कारोबारी जगत में हाहाकार विभाग कहा जाता है लेकिन अब इसी विभाग में हाहाकार मचा हुआ है। 24 जुलाई को पूरे देश में आयकर विभाग के स्थापना दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया गया। लेकिन अब एक अगस्त से जो जंग छिड़ने वाली है, वो सरकार को वित्तीय मोर्चे पर विफल बनाने की तैयारी के साथ है। अब एक अगस्त से वे ब्लैक मनी रखने वालों पर छापे नहीं मारेगें और टैक्स नहीं भरने वालों के खाते का सर्वे नहीं करेगें। अगर कानपुर में अधिकारी संघ अपनी मांग पर अड़ा रहा तो सरकार को होने वाले आर्थिक नुकसान का अंदाज सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि पिछले वित्तीय वर्ष में आयकर अधिकारियों ने टैक्स चोरों के यहां छापे मारकर 25 हजार करोड़ रुपये सरकार के खजाने में भरे थे।

आयकर विभाग के अधिकारी चाहते हैं कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए। क्योंकि वित्तीय वर्ष 2003-04 में कर वसूली एक लाख करोड़ रूपये थी जो 2017-18 में बढ़कर दस लाख करोड़ रूपये हो गई।  लेकिन कर वसूली करने वाले अधिकारियों की संख्या 56 हजार से घटकर 45 हजार रह गयी। आयकर अधिकारी से असिस्टैण्ट कमिश्नर की प्रोन्नति की समयसीमा दस साल से अधिक बीत जाने के बावजूद प्रोन्नति नहीं हुई हैं। अब नये कैडर रिव्यू के लिये कमिटी का गठन हो। आयकर कर्मचारियों के 32 हजार पद खाली है इन्हें भरा जाए। आयकर अधिकरण 2012 में आयकर अधिकारियों के के संसोधित वेतन मान को 1996 से लागू करने का फैसला सुना चुका है लेकिन बोर्ड इस पर अमल नहीं कर रहा है।  इस तरह कुल 10 मांगें हैं। जिन्हें प्रत्यक्ष कर बोर्ड चेयरमैन को सौंपा जा चुका है।

आयकर अफसर मानते हैं कि उनके छापे बन्द करने के फैसले से सरकार को राजस्व और देश के विकास कार्यक्रमों को बड़ा नुकसान पहुंचेगा। लेकिन इसके लिये वे प्रत्यक्ष कर बोर्ड के चेयरमैन पर गम्भीर आरोप लगा रहे हैं।  अब सवाल ये उठता है कि क्या नयी भर्तियों और प्रमोशन देने से वित्त मंत्रालय पर इतना आर्थिक बोझ बढ़ जायेगा कि उसे उठाया न जा सके।  इस पर एसोसिएशन के पास अपने अलग आंकड़े हैं। वो कहता है कि कई मुल्कों की सरकारें रेवेन्यू कलेक्शन पर छह से आठ प्रतिशत यानी सौ रूपये के संग्रह पर आठ रूपये तक खर्च कर रही हैं। जबकि भारत सरकार को हर सौ रूपये पर केवल साठ पैसे खर्च करना पड़ता है इसलिये उनकी मांगें देशहित विरोधी नहीं हैं।

—ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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