भारत की बहुचर्चित एंटीवायरल दवा रेमडेसिवीर महामरी को खत्म करने में काफी कारगार है। लेकिन इस भयंकर कोरोना काल में दवा पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। दावा है कि, इसकी जमाखोरी और काला बाजारी हो रही है। काला बाजारी के कारण केंद्र सरकार ने दवा की निर्यात पर रोक भी लगा दी है। बता दें कि, ये वही दवा है जब 2014 में इबोला अफ्रीकी देशों में महामारी बनकर फैला। उसके इलाज में इसका इस्तेमाल हुआ। ये उसमें असरदार भी दिखी।

इसके बाद भी WHO ने इस दवा को कोरोना महामरी के दौरान इस्तेमाल करने की मान्यता नहीं दी है। इसे लेकर ICMR की अलग अवधारणा है, राज्य की एक अलग सोच है। जनता को पता नहीं है। जनता को लगता है कि, रेमडेसिविर उन्हें कोविड-19 से बचा सकता है। एक समय पर इस दवा का खूब प्रचार किया गया था। लेकिन जब बात जरूरत की आई तो भारतीय बाजार स ये गायब ही हो गया है।

इसी बीच गुजरात हाईकोर्ट ने कोरोना मरीजों के लिए रेमडेसिविर दवा को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठाए हैं। हाईकोर्ट का कहना है कि राज्य सरकार अपने संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को खुलकर रेमडेसिविर के मिथकों पर अपना बयान देना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, रेमडेसिविर दवा उपलब्ध है, लेकिन आपके अनुसार यह जमाखोरी की जा रही है। क्यों? अदालत ने कहा, “रेमडेसिविर को लेकर बहुत सारे मिथक हैं। WHO की अलग अवधारणा है, ICMR की अलग अवधारणा है, राज्य की एक अलग सोच है। जनता को पता नहीं है। जनता को लगता है कि रेमडेसिविर उन्हें कोविड-19 से बचा सकता है। इसका अनावश्यक रूप से प्रचार किया गया है। राज्य ने ये सब कुछ देखा। तो रेमडेसिविर को इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए था अगर यह सब प्रासंगिक नहीं था। हम चाहते हैं कि राज्य इस पर एक खुला बयान दे और सभी को इस बारे में सही जानकारी दी जानी चाहिए।”

कोरोना महामारी के बीच इस दवा की भारत में भयंकर मांग है लेकिन पूरी तरह इसे गायब ही कर दिया गया है। अमेरिका की कंपनी गिलिएड साइंसेस के पास इसका पेटेंट है। उसने चार भारतीय कंपनियों से इसे बनाने का एग्रीमेंट किया, वो कंपनियां हैं-सिप्ला, हेटेरो लैब्स, जुबलिएंट लाइफसाइंसेस और मिलान. ये चारों कंपनियां बड़े पैमाने पर उसे बनाती हैं और दुनिया के तकरीबन 126 देशों को इसका निर्यात करती हैं।

जब कोरोना पहली लहर के तौर पर दुनिया में आया तो उसके प्रकोप के बीच कई देशों में इसका इस्तेमाल हुआ और इसके सकारात्मक नतीजे मिल। हालांकि वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन अब भी कोरोना की दवा के तौर पर इसे मान्यता नहीं देता लेकिन कोरोना रोगियों पर जब इस्तेमाल किया गया तो उनके ठीक होने का अनुपात अच्छा खासा रहा।

रेमडेसिवीर मंहगी दवा है, जिसकी कीमत भारतीय बाजार में करीब 4800 रुपये है लेकिन कालाबाजार में ये कहीं ज्यादा ऊंची कीमत में बेचा जा रही थी। तभी भारतीय सरकार ने इस दवा के बाहर भेजे जाने पर रोक लगा दी ताकि पहले इससे घरेलू जरूरतें पूरी की जा सकें। इस दवा को बनाने के लिए बांग्लादेश भी काम कर रहा है।

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