10 दिन साथ रहने के बाद आखिरकार वो दिन आ गया जब गणपति बप्पा को विदाई देनी है। लोगों का मन उदास है क्योंकि अब बप्पा से मुलाकात अगले बरस हो पाएगी। बप्पा बिना कुछ लिए सुख, शांति और सद्बुद्धि देकर चले गए। लेकिन साथ में एक विश्वास और उम्मीद भी देकर भी गए कि अगले बरस भी वो जरूर आएंगे। इसी विश्वास के साथ अब राष्ट्र के निर्माण में सकारात्मक सोच के साथ लोगों को जुटना चाहिए। वैसे इस बार का गणेश विसर्जन कई मायनों में खास रहा क्योंकि इस बार बप्पा हमारे साथ 9 दिन नहीं बल्कि 10 दिन साथ रहे। आज ग्यारहवें दिन उनका विर्सजन है।

पूरे देश में मनाए जाने वाले गणेश चर्तुथी का असली रंग महाराष्ट्र राज्य में देखने को मिलता है। महाराष्ट्र में गणेश जी का अलग ही महत्व है। अमीर हो या गरीब सभी लोग अपने घऱों में भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमा को लाते हैं। 10 दिनों तक उनकी पूजा अर्चना होती है। घऱ में सभी सदस्यों का ध्यान धार्मिक कार्यों में होता है। इस कारण सभी प्रकार के दूषित विचारों का अग्नि में दाह संस्कार हो जाता है और घर में सुख, शांति का माहौल बना रहता है।

मंगलवार को भारत भर में गणेश जी विसर्जित किए जा रहे हैं। सभी भक्तजन बड़े उल्लास से मूर्ति को उठाकर गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया, अगले बरस तू जल्दी आना के सुरों के साथ घाटों और तटों के लिए रवाना हो रहे हैं। महाराष्ट्र में कई कलाकार, राजनेता और बड़े बिजनेस आदि भी इस विसर्जन कार्य में हिस्सा लेते हैं।

बता दें कि हिन्दू धर्म के अनुसार माना जाता है कि इन दस दिनों में भगवान गणेश लोगों के बीच रहते हैं। लोगों का मन इन दस दिनों तक भगवान गणेश के भक्ति में लीन रहता है। घऱों में भगवान गणेश की मूर्ति की प्रतिमा रखी जाती है। 10 दिन के बाद मिट्टी के मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता है। ये विसर्जन हमें सीख देता है कि जो आया है वो एक न एक दिन जाएगा, न आदमी कुछ लेकर आया है और न कुछ लेकर जाएगा। अगले जन्म के लिए इस शरीर को छोड़ना आवश्यक है, इसलिए हमें भी कभी न कभी इस मिट्टी में लीन हो जाना है। अतः भगवान गणेश जाते-जाते भी इंसानों को सीख देते हुए अगले साल आने का वादा कर के अपने माता-पिता के पास कैलाश वापस लौट जाते हैं।