सरकार दूर-दराज के गांवों में रहने वालों तक जन वितरण प्रणाली का राशन पहुंचाने का दावा करती है। लेकिन बोकारो के जरीडीह प्रखंड के लिपु गांव के लोगों को राशन लेने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ई-पॉश मशीन में अंगूठा लगाने के लिए उन्हें बंगाल की सीमा पर स्थित ऊंची पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है। यदि नेटवर्क मिला तो पाश मशीन में नाम दर्ज हो जाता है।नहीं तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ता है। कभी-कभी तो पेड़ पर चढ़कर नेटवर्क तलाशा जाता ।
जरीडीह प्रखंड के भस्की पंचायत के लिपु गांव के लोग पांच किलो चावल के लिए जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। राशन देने के लिए सरकार ने पीओएस मशीन की शुरुआत की है।इसके लिए लोगों को अपना अंगूठा मशीन पर लगाना पड़ता है।और अंगूठा तभी लग पाता है।जब मोबाइल नेटवर्क हो।इलाके में माबइल नेटवर्क का बुरा हाल है। जिसकी वजह से पूरा गांव टॉवर की तलाश मे पहाड़ पर चढता है।चाहे कोई बुजुर्ग हीं क्यों ना हो।
पीओएस मशीन का टावर गांव में काम नहीं करता है इसलिए लोगो को एंटीना और मशीन लेकर बंगाल की सीमा पर स्थित पहाड़ पर चढकर टावर की खोज करके अंगूठा लगाना पड़ता है। अंगूठे का निशान कंफर्म होने के बाद ही राशन मिल पाता है।
अब हालत यह है कि बूढ़े, बच्चे, महिला सहित सभी राशन सेंटर से पांच किलोमीटर चलकर नेटवर्क की खोज में निकलते हैं।यह इलाका जंगलों से भरा पड़ा है। इलाके में आए दिन जंगली हाथियों का रौद्र रूप देखा जाता है। सांप बिच्छू और दूसरे जंगली जानवर का डर अलग बना रहता है।क्षेत्र की मुखिया का कहना है कि वह लोगों की इस समस्या के बारे में सरकारी अधिकारियों को बहुत पहले बता चुकी है ।
लोग पैदल चलकर पहाड़ी पर चढ़ते हैं। संयोग अच्छा रहा तो नेटवर्क मिलता है और पीओएस मशीन में नाम दर्ज हुआ तो ठीक वरना घंटों इंतजार करना पड़ता है। यहां तक कि पेड़ों पर चढ़कर नेटवर्क तलाशा जाता है और उसके बाद भी नेटवर्क नहीं मिला तो यही प्रक्रिया अगले दिन भी
दुहराई जाती है जो असल में कभी-कभी तीन दिनों तक भी चलता है । इस बारे में जब जिले के उपायुक्त से बात की गई।तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि लोगों की मुश्किलों को देखते हुए वे राशन वितरण की ऑफलाइन व्यवस्था करायेंगे ।
ग्रामीणों को घर से दुकान। फिर दुकान से पहाड़। फिर पहाड़ से दुकान। फिर घर तक का चक्कर लगाना पड़ता है । ऐसे में किसी बीमार या बुजुर्ग के पहाड़ी से गिरने का खतरा बना रहता है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सरकार बेशक डिजिटल इंडिया के ढोल पीट रही हो लेकिन। लेकिन सरकारी अफसरों के सुस्त रवैये के कारण कई जगहों पर यह योजना लोगों के लिए मुसीबत साबित हो रही है।