केंद्र सरकार द्वारा 2019 में दिए गए आर्थिक रूप से कमजोर (Economically Weaker Section) लोगों को आरक्षण को लेकर 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई होगी.
वो तीन सवाल जिनको लेकर हो रही है सबसे ज्यादा चर्चा–
क्या राज्य सरकारों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की शक्ति देते हुए संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ की गई है?
क्या राज्यों को निजी गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण का विशेष प्रावधान सौंपना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
क्या इस संशोधन में SEBC/OBC/SC/ST को EWS आरक्षण से बाहर करना संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ है?
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित की अगुआई वाली संविधान पीठ करेगी. हालांकि, खंडपीठ ने कहा है कि ये तीन प्रारंभिक सवाल हैं लेकिन पक्षकार अपनी दलीलों में अन्य सवाल भी शामिल कर सकते हैं.
EWS आरक्षण पर 13 सितंबर को होगी सुनवाई
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section) के उम्मीदवारों को दाखिले तथा नौकरी में दस फीसदी आरक्षण देने के केन्द्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता के संबंध देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई सभी 40 याचिकाओं पर 13 सितंबर से सुनवाई शुरू करेगा.
EWS आरक्षण और संविधान में 103वां संशोधन
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2019, में किए गए 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया. संशोधन के जरिये भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) शामिल किया गया है, जिससे अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके.
संविधान का अनुच्छेद 15 (6) राज्य को खंड (4) और खंड (5) में शामिल लोगों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान बनाने और शिक्षण संस्थानों (अनुदानित तथा गैर-अनुदानित) में उनके दाखिले के लिए एक विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है, हालांकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 30 के खंड (1) में संदर्भित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शामिल नहीं किया गया है.
संविधान का अनुच्छेद 16 (6) राज्य को यह अधिकार देता है कि वह खंड (4) में शामिल वर्गों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का कोई प्रावधान करें, यहां आरक्षण की अधिकतम सीमा 10 फीसदी है, जो कि मौजूदा 50 फीसदी आरक्षण की सीमा के अतिरिक्त है.
यह प्रावधान केंद्र और राज्यों दोनों को समाज के EWS को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है.
याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 103वां संविधान संशोधन स्पष्ट तौर पर अधिकारातीत (Ultra Vires) (बिना कानूनी आधार के) है, क्योंकि यह संविधान के मूल ढांचे में बदलाव करता है.
याचिका में तर्क दिया गया था कि 103वां संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के खिलाफ है. 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के तौर पर ही नहीं किया जा सकता है.’
याचिकाकर्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section) के लिये लागू किये गए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन करते हैं. देश में SC, ST और OBC वर्ग को पहले से ही 15 फीसदी, 7.5 फीसदी और 27 (कुल 49.50 फीसदी) फीसदी आरक्षण दिया जा चुका है.
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला 2019 से ही लंबित है. पहले सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आरक्षण की वैधता (Validity) से संबंधित इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाए या नहीं.
सरकार का तर्क
केंद्र सरकार का तर्क है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के सामाजिक उत्थान के लिये आरक्षण जरूरी है, क्योंकि इस वर्ग के लोगों को मौजूद आरक्षण प्रावधानों का लाभ नहीं मिलता है. सरकार का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) श्रेणी में देश का एक बड़ा वर्ग शामिल है, जिसका विकास भी जरूरी है. सरकार का कहना है कि इस आरक्षण का उद्देश्य लगभग 20 करोड़ लोगों का विकास करना है जो अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं.
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ करेगी सुनवाई
केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण संबंधी मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट्ट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की संविधान पीठ सुनवाई करेगी.
क्या तय करेगी पीठ
संविधान पीठ मुख्य तौर पर इस सवाल को लेकर विचार करेगी कि ‘आर्थिक पिछड़ापन’ सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिये एकमात्र मानदंड हो सकता है या नहीं. संविधान पीठ को यह भी तय करना होगा कि क्या आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो सकती है.
संविधान पीठ
‘संविधान के अनुच्छेद 145(3) और सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XXXVIII नियम 1(1) से स्पष्ट है, जिन मामलों में कानून की व्याख्या संबंधी सवाल शामिल हैं, उन्हें संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के लिये संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिये.
EWS के लिए क्या जरूरी
ईडब्ल्यूएस की पहचान 17 जनवरी, 2019 को जारी की गई एक अधिसूचना के माध्यम से की जाती है. इस अधिसूचना में ईडब्ल्यूएस की पहचान के लिये कई शर्तें रखी गई थीं, जैसे- लाभार्थी के परिवार के पास पांच एकड़ कृषि भूमि, 1,000 वर्ग फुट का आवासीय फ्लैट और अधिसूचित / गैर-अधिसूचित नगर पालिकाओं में 100 / 200 वर्ग गज और उससे अधिक का आवासीय भूखंड नहीं होना चाहिए.