देश का अन्नदाता अन्न को तरस रहा है। लोगों का पेट भरने वाला किसान खुद भूखे पेट पानी पीकर सोने को मजबूर है। लेकिन, सरकारें उनकी दशा और दिशा सुधारने के लिए कोई ठोस प्रयास करने की बजाए कोरे आश्वासनों से उनका पेट भरने की कोशिश कर रही हैं। किसानों की हालत आज ऐसी है, या कुछ साल पहले ऐसी थी, ऐसा नहीं है। इतिहास की पन्ने खंगाले तो पता चलेगा कि, मुगलकाल से लेकर अंग्रेजों के दौर तक और आजाद भारत के इतिहास में नेहरू, इंदिरा-राजीव से लेकर अटल और मोदी के राज में भी किसानों की स्थिति जस की तस है। उनकी स्थिति में ना तो तब कोई बदलाव आया था और ना आज कोई अंतर है। किसान तब भी दबे-कुचले और शोषित थे, वो आज भी उसी दौर में जी रहे हैं। हम गर्व से कहते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती-किसानी पर निर्भर करता है और किसान देश की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान देते हैं, लेकिन जब बात उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति की आती है, तो मालूम चलता है कि देश के रीढ़ की हड्डी बने किसान की कमर कर्ज और मुफलिसी के बोझ तले दबकर दिन ब दिन टूटती जा रही है। कर्ज में डूबे और खेती में हो रहे घाटे को किसान बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। देश में हर साल हजारों किसान आत्महत्या करते हैं। लेकिन उनकी ये पीड़ा चुनावी नारों और वादों में दबकर रह जाती है। नेता किसानों के जीवन में सुधार की बात तो करते हैं लेकिन ये सुधार उनके जीवन में कहीं नजर नहीं आता। हां, किसानों को दिए कोरे वायदों से नेताओं की सियासी जमीन जरूर उर्वरा हो जाती है। किसानों की सेहत सुधारने के लिए आज तक सरकारों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। लेकिन, उनके वोटों के जरिए अपनी सेहत जमकर सुधारी है। गरीब तबके में शामिल किसान ना सिर्फ अशिक्षित है, बल्कि, सामाजिक व्यवस्था में भी उसका स्थान आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति की है। किसानों की बेरुखी के पीछे एक कारण ये भी है कि उनके आंदोलन ज्यादातर नेतृत्व विहीन रहे हैं जिन्हें तोड़ना सियासतदानों के बाएं हाथ का खेल है। लेकिन, प्रचार माध्यमों के बढ़ने के साथ ही धीरे-धीरे जागरुकता बढ़ रही है। लोग अपने अधिकारों को लेकर सजग हो रहे हैं और इसका असर दिखाई देने लगा है। किसान अब एकजुट होकर व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। अपनी मांगों को लेकर सरकारों को चुनौती दे रहे हैं, और बता रहे हैं कि अब उन्हें सिर्फ वोट के लिए बरगलाना आसान नहीं है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे किसान आंदोलन बता रहे हैं कि अगर स्थितियां जल्द सुधारी नहीं गईं, तो देश का अन्नदाता चुप नहीं बैठेगा। farm

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