गुजरात में आगामी राज्य सभा चुनाव में ‘नोटा’ के इस्तेमाल पर तत्काल रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। इसी के साथ कोर्ट ने नोटा को चुनौती दे रही कांग्रेस से पूछा है कि चुनाव आयोग ने 2014 में जब नोटा का नोटीफिकेशन जारी किया था तब चुनौती क्यों नही दी थी?
दरअसल गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक (व्हिप) शैलेश मनुभाई परमार ने अपनी याचिका के जरिए विधानसभा सचिव द्वारा जारी एक परिपत्र को रद्द करने की मांग की है। परिपत्र में कहा गया है कि नोटा का विकल्प उच्च सदन के चुनावों में लागू किया जाए। कांग्रेस का तर्क है कि इस विकल्प का इस्तेमाल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों और चुनाव संचालन नियम, 1961 का उल्लंघन करेगा। इसमें कांग्रेस द्वारा दावा किया गया है कि अधिनियम और नियमों में कोई संबद्ध संशोधन किए बगैर नोटा पेश करने का चुनाव आयोग का कथित प्रशासनिक कार्य अवैध, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण होगा।
कल वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष फौरन सुनवाई किए जाने का अनुरोध किया था। उन्होंने इसके लिए यह आधार दिया था कि इन चुनावों में मत पत्र में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं ’ (नोटा) के लिए कोई सांविधिक प्रावधान नहीं है।
वहीं भाजपा ने भी बुधवार को चुनाव आयोग को ज्ञापन देकर मांग की कि गुजरात के राज्यसभा चुनाव से नोटा का विकल्प हटा दिया जाए। भाजपा का कहना है कि चूंकि यह बहस का मुद्दा बन गया है, इसलिए इस पर आम सहमति जरूरी है। राज्यसभा चुनाव में कोई गोपनीयता नहीं रहती, इसलिए नोटा बहुत उपयोगी नहीं है।
बता दें कि राज्यसभा चुनाव में विधायकों को अपना मतपत्र मतपेटी में डालने से पहले उसे पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना पड़ता है। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक यदि विधायक पार्टी के निर्देश का उल्लंघन कर किसी अन्य के पक्ष में वोट डालता है या नोटा का इस्तेमाल करता है तो उसे विधायक के रूप में अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता। हालांकि, पार्टी उसे निकालने समेत अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ईवीएम में ‘नोटा’ का बटन अनिवार्य किया था और इसे जनवरी 2014 से लागू कर दिया गया था।