देश में आरक्षण को लेकर लगातार बहस जारी है। एक तरफ जहां गुजरात चुनाव में आरक्षण को लेकर सियासत गर्म है तो वहीं दूसरी तऱफ सुप्रीम कोर्ट में भी आरक्षण का एक मुद्दा गर्माया हुआ है। खास बात ये है कि ये आरक्षण किसी जाति विशेष को आरक्षण देने का नहीं है बल्कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने को लेकर है। पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट अब फिर से ये विचार करेगा कि क्या सरकारी नौकरी में प्रमोशन में SC/ST को आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं, भले ही इस संबंध में उनके पास अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को लेकर डेटा ना हो। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी।
बता दें कि अभी तक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर. भानुमति की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रहे थे। लेकिन अब उन्होंने इस मामले को संवैधानिक पीठ में भेजने का फैसला लिया है। इससे पहले नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया गया था। ऐसे में कई राज्य सरकारों ने हाईकोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि जब राष्ट्रपति ने नोटिफिकेशन के जरिए SC/ST के पिछड़ेपन को निर्धारित किया है, तो इसके बाद पिछड़ेपन को आगे निर्धारित नहीं किया जा सकता। राज्यों व SC/ST एसोसिएशनों ने दलील दी कि क्रीमी लेयर को बाहर रखने का नियम SC/ST पर लागू नहीं होता और सरकारी नौकरी में प्रमोशन दिया जाना चाहिए क्योंकि ये संवैधानिक जरूरत है।
गौरतलब है कि दोनों जजों ने 5-5 जजों की दो पीठों के दो मामलों ईवी चेन्नैया और एम नागराज के फैसलों मे अंतर होने के कारण इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा था। मामला अनुच्छेद 145(3) के तहत भेजा गया है जो संवैधानिक प्रावधान की व्याख्या से जुड़े मामले पर संविधान पीठ के सुनवाई करने की बात कहता है। ये मामला बहुत महत्वपूर्ण है और इससे एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में पिछले 11 वर्षो से चली आ रही व्यवस्था बदल सकती है। अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की ज़रूरत है भी कि नहीं क्योंकि 2006 में नागराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना मात्रात्मक डेटा के SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। बता दें कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर 2002 में मध्यप्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने नियम बनाए थे। जबलपुर हाईकोर्ट में इन नियमों को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने पिछले साल 30 अप्रैल को पदोन्नति में आरक्षण के ये नियम खत्म करने के आदेश दिए थे। राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसपीएल दायर की थी। उसके बाद से ही सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है।