अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (23 मार्च) को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से दलीलें पेश की गईं। मामले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पास भेजने का भी मामला उठा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर आपकी दलीलों में दम नजर आया तो ही मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाएगा। इससे पहले 14 मार्च को दिए अपने अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे पक्षों की सभी 32 हस्तक्षेप याचिकाएं खारिज कर दीं थी।
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर शुक्रवार (23 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट में इस बात को लेकर दलीलें रखी गईं कि संविधान पीठ के 1994 के उस फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंटिगरल पार्ट नहीं है। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि इस्लाम के तहत मस्ज़िद का बहुत महत्व है। एक बार मस्ज़िद बन जाए तो वो अल्लाह की संपत्ति मानी जाती है उसे तोड़ा नहीं जा सकता। खुद पैग़ंबर मोहम्मद ने मदीना से 30 किमी दूर मस्ज़िद बनाई थी, इस्लाम में इसके अनुयायियों के लिए मस्ज़िद जाना अनिवार्य माना गया है।
धवन ने आगे कहा कि भारत में हर धर्म, भाषा, नस्ल के लोग रहते हैं और देश संगमरमर की इमारत की तरह हैं, एक भी टुकड़े का सरकना इमारत को नुकसान पहुंचाएगा। देश मे हिंदुओं के लिए धार्मिक लिहाज़ से अहम कई इमारतें हैं लेकिन मुसलमानों के लिए ऐसी कोई जगह नहीं है। धवन ने कहा कि ये दावा किया जाता है कि लाखों साल पहले भगवान राम पैदा हुए थे लेकिन वो उसी जगह पर पैदा हुए थे, इसका क्या प्रमाण है?
दलीलें देते हुए धवन ने कहा कि 1994 के फारुखी फैसले में कहा गया कि मुसलमान कहीं भी नमाज़ पढ़ सकते हैं, मस्ज़िद अनिवार्य नहीं है। ये सही है कि मुसलमान कहीं भी नमाज़ पढ़ सकते हैं लेकिन कहां पढ़ें, ये कोई और कैसे तय कर सकता है? हमें क्यों साबित करने को कहा जा रहा है कि वो जगह मस्ज़िद थी।
इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि फारुखी फैसले में अयोध्या में ज़मीन के अधिग्रहण को सही ठहराया गया। इससे आपको क्यों दिक्कत है, अधिग्रहण धर्मनिरपेक्ष था और ये मंदिर के लिए भी था और मस्ज़िद के लिए भी था। जवाब में राजीव धवन ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष को किसी वैज्ञानिक परिभाषा की जरूरत नहीं है, इसका सीधा सा अर्थ समानता है। एक मस्जिद का उतना ही महत्व है जितना मंदिर का।
सुनवाई को दौरान मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की भी अपील की गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर आपकी दलीलों में दम नजर आया तो ही मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल क होगी।