दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। इस बार यह विवाद जुड़ा है केजरीवाल और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली से जुड़े मानहानि केस मामले में चल रही सुनवाई से। केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने अपने निजी मामले की सुनवाई के लिए सरकारी पैसों से वकील राम जेठमलानी को फीस भुगतान करने को कहा है। इस आदेश को लेकर लिखी गई चिट्ठी के सार्वजनिक होने के बाद बीजेपी और अन्य पार्टियाँ केजरीवाल पर हमलावर हो गई हैं।
दिल्ली प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता तेजेंदर पाल सिंह बग्गा ने इस मामले को लेकर ट्वीट करते हुए केजरीवाल पर हमला बोला है। उन्होंने अपने ट्वीट में रामजेठमलानी को फीस भुगतान के बाबत दिल्ली सरकार द्वारा लिखी गई चिठ्ठी भी शेयर की है। इस चिट्ठी में यह साफ़ लिखा है कि राम जेठमलानी के रिटेनरशिप फी एक करोड़ रुपये है। जबकि कोर्ट में हर उपस्थिति के लिए वह 22 लाख रूपए चार्ज करते हैं। इस हिसाब से अब तक 3 करोड़ 42 लाख रुपये का बिल भुगतान होना है। जिसके लिए केजरीवाल की तरफ से मनीष सिसोदिया ने एक नोट लिखा है इसमें कहा गया है कि जेठमलानी की ओर से आने वाले बिल का भगुतान कर दिया जाए, उसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास न भेजा जाए। इस कागज पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के हस्ताक्षर हैं।
. @ArvindKejriwal paid Rs 4 Crore Delhi Public money to Mr Ram jethmalanai in his personal legal case (Sh Jaitly Defmiantion case) pic.twitter.com/aR2wNwpN8N
— Tajinder Pal S Bagga (@TajinderBagga) April 3, 2017
मनीष सिसोदिया के इस पत्र को दिल्ली के कानून विभाग ने इन बिलों का मामला एलजी के पास भेजा था। विभाग का कहना था कि एलजी की अनुमति जरूरी है। इस मामले में अब दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने सालीसिटर जनरल रंजीत कुमार से सलाह मांगी है। इस पूरे मामले के सामने आने के बाद खुद को ईमानदार और आम आदमी बताने वाले केजरीवाल पर सवाल उठने लगे हैं। दिल्ली में नगर निगम चुनावों के बीच केजरीवाल पर लगा यह आरोप आम आदमी पार्टी पर भी भारी पड़ सकता है।
गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने मानहानि का केस दर्ज कराया था। जिसकी पैरवी के लिए केजरीवाल की तरफ से कोर्ट में राम जेठमलानी पैरवी करने पहुंचे थे। केजरीवाल पर यह मामला तब दर्ज हुआ था जब उन्होंने अरुण जेटली पर दिल्ली क्रिकेट संघ का अध्यख रहते भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप लगाया था। ऐसे में यह सवाल अहम् है कि क्या निजी पैरवी पर सरकारी फंड से करदाताओं के पैसों का प्रयोग सही है?