संविधान धर्म के आधार पर विभेद की कतई इजाजत नहीं देता, वैसे भी ये निहायत ही निजी आस्था का विषय है। लेकिन, सियासत को इसकी परवाह कब रही है, धर्म के आधार पर विभाजन या यों कहें कि, तुष्टीकरण वोटों के खजाने की चाबी जो ठहरी। टोपी और तिलक के सवाल और उस पर नेताओं के समय-समय पर जवाब इसके जगजाहिर सबूत हैं। अब अन्ना की इमानदारी की ऊपजी फसल से सीएम पद पर काबिज केजरीवाल पर सवाल उठे हैं। ऐसे में माथा कैसे नहीं ठनके…? ये सवाल इंडिया अगेंस्ट करप्शन में उनके साथी रहे कपिल मिश्रा ने उठाए हैं। इसके पीछे इन दिनों दिल्ली में लगा एक पोस्टर है। इन पोस्टर्स में दिल्ली के साफ-साफ लिखा है कि, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुसलमानों के मसीहा हैं। खजूरी इलाके में लगे इन पोस्टर्स में 4 फरवरी को राजीव पार्क में रैली का जिक्र है। पोस्टर्स पर आम आदमी पार्टी, करावल नगर विधानसभा छपा है।

ऐसे में करावल नगर विधानसभा सीट से केजरीवाल के बागी साथी कपिल मिश्रा को बैठे-बिठाये एक मुद्दा मिल गया। और फिर फटाफट ट्वीट भी किया,

ये कहाँ आ गए AAP? कृपया इस दिल्ली शहर में ऐसी राजनीति मत करिए।

कपिल मिश्रा के तंज भरे ट्वीट के पीछे उनके मन का गुबार भी है। उन्होंने कहा कि, ‘खजूरी के इलाके श्री राम कॉलोनी में जहां पर यह सभा की जा रही है वह एक मुस्लिम बहुत इलाका है और पोस्टर में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गलत है। ये गंदी राजनीति है, आम आदमी दिल्ली में गंदी किस्म की राजनीति की शुरुआत कर रही है।’

बीजेपी की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता तजिन्दर सिंह बग्गा ने भी इन पोस्टर्स पर सवाल उठाये हैं।

कहा तो ये भी जा रहा है कि, कुछ लोगों ने एक शख्स को ऐसे ही पोस्टर लगाते हुए पकड़ा था। ऐसे में केजरीवाल के खिलाफ इसे साजिश समझा जाए या कुछ और…?

केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता में आने के पहले वाई-फाई, 15 लाख सीसीटीवी कैमरे और महिला सुरक्षा का मुद्दा जबरदस्त तरीके से उठाया। पीएम मोदी को अनसुना कर जनता ने भी आम आदमी पार्टी को सिर पर बैठाया। अब ये पार्टी कहां जा रही है, ये भी तो जनता देख रही है। फिलहाल दिल्ली का सियासी पारा सीलिंग के बहाने गर्म है। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने इस मुद्दे पर उन पर जुबानी वार किये थे। ऐसे में क्या ये ध्यान भटकाने का फॉर्मूला है? हमें इन पोस्टर्स के पीछे की सियासत को भी समझना चाहिए। खैर…जनता के लिए, जनता की बात करने वाली आम आदमी पार्टी भी अन्य दलों टाइप ही दिखती है। जहां गुटबंदी चरम पर है। कभी अपने रहे आज बेगाने हैं। चाहे वह लोकपाल का मुद्दा हो या सम्मान का। आप के लिए वोटों की तालियां पिटवाने वाले कवि कुमार विश्वास भी हाशिये पर फेंक दिए गए हैं। उनके 20 विधायकों पर तलवार तटक रही है, ऐसे में भविष्य में होने वाले चुनाव में कहीं निगम वाला हाल हो गया तो केजरीवाल की सियासी जमीन अकाल में फटी खेत सी हो जाएगी। पंजाब, गुजरात और गोवा में तो भद्द पिट ही चुकी है। गोवा में तो सीएम कैंडिडेट तक की जमानत जनता ने जब्त करा दी।

ऐसे में हम तो यही कहेंगे कि, जनता को खुद को बांटने की बजाय हिसाब मांगना पड़ेगा, तभी बंद होगा ये खेल। इतिहास और वर्तमान आईना है, जिसने जनता को नहीं समझा उसे जनता ने भी वक्त आने पर कभी नहीं समझा।

-मयंक सिंह