साबरमती एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में गिरफ्तार किए गए गुलजार अहमद वानी को 16 साल बाद बरी कर दिया गया है। वानी पर हिजबुल मुजाहिद्दीन का आतंकी होने का आरोप था उसे बाराबंकी कोर्ट ने बरी कर दिया है। वानी के साथ आरोपी मोबिन की भी रिहाई हो गई है जिसपर वानी का साथ देने का आरोप था।
वानी श्रीनगर के पीपरकारी इलाके का निवासी है और इस समय वह लखनऊ की एक जेल में बंद है। उसे साबरमती एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले के अलावा 11 अन्य मामलों में आरोपी बनाया गया था। वानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का पूर्व स्कॉलर है जिसे दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2001 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कथित रूप से विस्फोटक और आपत्तिजनक सामान के साथ गिरफ्तार किया था। जिस वक्त गुलजार को गिरफ्तार किया गया, तब उसकी उम्र 28 साल थी और वो एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहा था।
आपको बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वानी के 16 साल के ट्रायल पर अप्रसन्नता जाहिर की थी और आदेश दिया था कि अगर कोर्ट विटनेस एक्जामिनेशन पूरा नहीं कर पाता तो उसे नवंबर महीने में बेल मिल जानी चाहिए। वहीं बाराबंकी कोर्ट ने दोनों को आपराधिक साजिश के कोई सबूत नहीं मिल पाने के बाद रिहा कर दिया। सरकारी वकील के मुताबिक इस केस में इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर आरोपी के खिलाफ, आपराधिक साजिश के कोई सबूत पेश कर पाने में नाकाम रहे। वानी के वकील एम एस खान के अनुसार न्यायाधीश एम ए खान ने दोनों आरोपियों के खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सकने की वजह से दोनों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
गौरतलब है कि राज्य सरकार वानी को इतने साल जेल में बंद रहने का मुआवजा भी देगी। सरकारी वकील वर्मा ने कोर्ट के आदेश के बारे में बताते हुए कहा कि आरोपियों को लंबे समय के लिए कैद कर देने से उनका मानसिक और आर्थिक नुकसान दोनों होता है। इसी के मद्देनजर कोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया है कि बरी किए गए दोनों लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से मुआवजा दिया जाए। वहीं वर्मा ने कहा- “कोर्ट ने यह निर्देश भी दिए हैं कि राज्य सरकार को उचित लगता है तो वह मुआवजे की रकम जांच कर रहे पुलिस अफसर से भी क्लेम कर सकती है। इसके अलावा राज्य सरकार को उस पुलिस अफसर के खिलाफ एक्शन लेने के निर्देश भी दिए गए हैं।”