भारत के इतिहास में निकाली गई यात्राओं में से सबसे लंबी यात्राओं में से एक भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) लेकर महाराष्ट्र के अकोला पहुंचे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने एक पत्रकार वार्ता में विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) पर निशाना साधा.
क्या बोले राहुल गांधी?
पत्रकार वार्ता के दौरान एक कागज दिखाते हुए राहुल गांधी ने कहा कि ये सावरकर (Savarkar) की चिट्ठी है और उसकी आखिरी लाइन पढ़कर सुनाया. राहुल गांधी ने अंग्रेजी में पढ़कर हिंदी में दोहराते हुए कहा कि, ‘सर, मैं आपका नौकर रहना चाहता हूं.’ उन्होंने कहा, ‘यह मैंने नहीं कहा, सावरकर जी ने लिखा है. इसे फडणवीस जी भी देखना चाहें तो देख सकते हैं. विनायक दामोदर सावरकर जी ने अंग्रेजों की मदद की थी.’
इसके बाद कुछ देर बाद वही चिट्ठी लहराते हुए उन्होंने कहा कि Savarkar जी ने यह चिट्ठी साइन की… राहुल ने आगे कहा कि गांधी जी, नेहरू, पटेल जी सालों जेल में रहे थे, लेकिन उन्होंने कोई चिट्ठी साइन नहीं की. मेरा कहना है कि सावरकर जी को यह चिट्ठी क्यों साइन करनी पड़ी? इसका कारण डर है. अगर वह डरते नहीं तो इस पर साइन नहीं करते. ऐसा कर उन्होंने गांधी, नेहरू, पटेल सबको धोखा दिया. ये दो अलग विचारधाराएं थीं.
कौन थे विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)?
28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर ग्राम में जन्मे विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील और लेखक थे. उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी नामक एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) की स्थापना की थी. इसके अलावा वे यूनाइटेड किंगडम गए और इंडिया हाउस (India House) एवं फ्री इंडिया सोसाइटी (Free India Society) जैसे संगठनों से जुड़े. सावरकर को स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantryaveer Savarkar) के नाम से भी जाना जाता है.

सावरकर ने वे वर्ष 1937 से लेकर 1943 तक हिंदू महासभा के अध्यक्ष का पदभार संभाला. वहीं Savarkar ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस’ (The History of The War of Indian Independence) नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह जिसको आजादी के पहले युद्ध के बारे में जाना जाता है, में इस्तेमाल किये गए छापामार युद्ध (Guerilla Warfare) के तरीकों (Tricks) के बारे में लिखा था. इसके अलावा उन्होंने ‘हिंदुत्व: हिंदू कौन है?’ (Hindutava: Who is a Hindu) पुस्तक भी लिखी.
इतिहासकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने बीबीसी के एक प्रोग्राम में कहा कि, सेल्यूलर जेल में लिखी गई उनकी हस्तलिपि, जिसका नाम था ‘हिंदुत्व: हम कौन हैं’. मुखोपाध्याय कहते हैं कि “इस दस्तावेज से प्रेरणा लेकर केशव बलिराम हेडगेवार (Keshav Baliram Hedgewar) ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh- RSS) बनाया. हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा सावरकर के पहले से विकसित हो रही थी, लेकिन सावरकर को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने हिंदुत्व को अपनी किताब के जरिए कोडिफाई किया. वही किताब हेडगेवार के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाने के लिए एक प्रेरक दस्तावेज बनी.”

मुकदमे और सजा
Savarkar को वर्ष 1909 में मॉर्ले-मिंटो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम 1909) के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इसके बाद 1910 में क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ संबंधों के लिये गिरफ्तार किया गया.
Savarkar पर नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिये उकसाने और भारतीय दंड संहिता 121-ए के तहत राजा (सम्राट) के खिलाफ साजिश रचने का आरोप भी लगा था. इन दोनों मुकदमों में सावरकर को दोषी ठहराया गया और 50 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई, जिसे काला पानी भी कहा जाता है, उन्हें वर्ष 1911 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल ले जाया गया.
अभिनव भारत सोसाइटी (Young India Society)
यह वर्ष 1904 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा स्थापित एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) थी. शुरुआत में नासिक में मित्र मेला के रूप में स्थापित समाज कई क्रांतिकारियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ भारत एवं लंदन के विभिन्न हिस्सों में शाखाओं से जुड़ा था.
फ्री इंडिया सोसाइटी
सावरकर जब वर्ष 1906 में लंदन गए थे उन्होंने इटैलियन राष्ट्रवादी ग्यूसेप माजिनी (Giuseppe Mazzini) (सावरकर ने माजिनी की जीवनी Joseph Mazzini लिखी थी) के विचारों के आधार पर फ्री इंडिया सोसाइटी की स्थापना की.
हिंदू महासभा (Hindu MahaSabha)
भारत के सबसे पुरान संगठनों में से एक अखिल भारत हिंदू महासभा (Akhil Bharat Hindu Mahasabha) का गठन वर्ष 1907 में हुआ था. इसके बाद देश के प्रतिष्ठित नेताओं ने वर्ष 1915 में अखिल भारतीय आधार पर इस संगठन का विस्तार किया. इस संगठन की स्थापना करने वाले और अखिल भारतीय सत्रों की अध्यक्षता करने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, विनायक दामोदर सावरकर आदि शामिल थे.
क्या सावरकर ने मांगी थी माफी?
शम्सुल इस्लाम जो दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर थे ने अपनी किताब ‘सावरकर-हिन्दुत्व: मिथक और सच’ जिसके अंग्रेज़ी संस्करण का नाम है ‘Savarkar Unmasked’ में बताया कि उन्होंने 1911 में सेल्यूलर जेल जाते ही पहले ही वर्ष में दया याचिका दायर की. उसके बाद उन्होंने वर्ष 1913, 1914, 1918, 1920 में दया याचिकाएं दायर कीं.
क्या लिखा गया था इन पत्रों में –
“सरकार अगर कृपा और दया दिखाते हुए मुझे रिहा करती है तो मैं संवैधानिक प्रगति और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी का कट्टर समर्थक रहूंगा जो उस प्रगति के लिए पहली शर्त है”. “मैं सरकार की किसी भी हैसियत से सेवा करने के लिए तैयार हूं, जैसा मेरा रूपांतरण ईमानदार है, मुझे आशा है कि मेरा भविष्य का आचरण भी वैसा ही होगा.”
सावरकर ने एक पत्र में लिखा है कि “मुझे जेल में रखकर कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि रिहा करने पर उससे कहीं ज़्यादा हासिल होगा. केवल पराक्रमी ही दयालु हो सकता है और इसलिए विलक्षण पुत्र माता-पिता के दरवाजे के अलावा और कहां लौट सकता है?”
“मेरे प्रारंभिक जीवन की शानदार संभावनाएं बहुत जल्द ही धूमिल हो गईं. यह मेरे लिए खेद का इतना दर्दनाक स्रोत बन गई हैं कि रिहाई एक नया जन्म होगा. आपकी ये दयालुता मेरे संवेदनशील और विनम्र दिल को इतनी गहराई से छू जाएगी कि मुझे भविष्य में राजनीतिक रूप से उपयोगी बना देगी. अक्सर जहां ताकत नाकाम रहती है, उदारता कामयाब हो जाती है.”
“मैं और मेरा भाई निश्चित और उचित अवधि के लिए राजनीति में भाग नहीं लेने की शपथ लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. इस तरह की प्रतिज्ञा के बिना भी खराब स्वास्थ्य की वजह से मैं आने वाले वर्षों में शांत और सेवानिवृत्त जीवन जीने का इच्छुक हूं. कुछ भी मुझे अब सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित नहीं करेगा.”
वहीं, इतिहासकार और वीर सावरकर की जीवनी लिखने वाले विक्रम संपत अपनी किताब और कई साक्षात्कारों में ये कह चुके हैं कि 1920 में गांधी जी ने सावरकर बंधुओं को याचिका दायर करने की सलाह दी थी और अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में एक लेख के जरिए उनकी रिहाई के बारे में बात की थी.